ग़ज़ल : यूं गुज़ारी जिंदगी
राहों में जिंदगी के ,यूं गुज़ारी जिंदगी।
कभी अज़नबी लगे,पर है हमारी जिंदगी।
मीलों में ये फैली है,जमीं से सितारों तक,
लगे दूर बड़ी मंजिल, है तुम्हारी जिंदगी।
दिल के टुकड़ों को संजोया,यूं कल्बो-ज़िगर,
चले मुस्कुरा के हरदम, यूं संवारी जिंदगी
हंगामा सा बरपा है फिर दिल के जख्मों में
सहके भी दर्द ए दिल पे है वारी जिंदगी
फैला हुआ है हरसू इंसानों का हुजुम
गुज़र रही तनहाईयों में सारी जिंदगी
उठने लगा धुआं है,अब दिल से आंखों तक,
फिर भी रही ख़ामोश ,नहीं हारी जिंदगी।
अब रुह के ऐवान में, जलने लगी शमां,
आईने मे है खुद को ,जब निहारी जिंदगी।
पुष्पा ” स्वाती “