कविता

बेटी

मेरी एक पुरानी रचना सबको समर्पित करती हूँ ।
जब मेरी बेटी का जन्म हुआ था………

“बेटी ”

तुमसे महका मेरे
जीवन का उपवन
लौट आया मेरे घर में
मेरा ही बचपन ।

किलकारियों से गूंज उठा
मेरा घर और आंगन
भूल गई मैं दुनिया सारी
पाकर ये नया जीवन ।

तेरी हर अदा से
प्रफुल्लित होता मेरा मन
जैसे मना रही हूँ
कोई त्यौहार पावन ।

रखा तूझे छुपाके आंचल में
जैसे तन में छुपा है मन
तूझ पर आंच न आए कोई
हो बरसात या धूप की तपन।

खेल-खेल में तू बड़ी हो गई
हुआ न मुझे इसका भान
काश एकबार लौट आए
तेरा वो प्यारा सा बचपन ।

ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]