कविता
बर्षा की फुहारो से
पानी की झनकारो से
हवा -भरी तुफानों से
गरज-गरज कर घुमड़ रहे है
रिमझिम – रिमझिम
बरसे सावन!
धुल भरी पतवारो से
सुगंधित पुष्प लताओ से
लता ओट मे छिपकर के
झम-झम करके अवनि पर
रिमझिम – रिमझिम
बरसे सावन!
खेत-क्यारियाँ सजी हुई हैं
हरा चादर ओढ़ी हुई हैं
नदी तालाब उफन रहे हैं
वर्षा अपना रंग जमाई
रिमझिम – रिमझिम
वरसे सावन!
— बिजया लक्ष्मी