गीत
ये चूड़ियाँ वाला इस उम्र में कड़ी मेहनत करता है
तीज़-त्योहारों में बहू-बेटियों के खुशी पल भरता है|
बेटे तो पढ़ा-लिखा गृहस्थी में खो गये लगता है
ये बेचारा पेट की खातिर राह बैठ निकलता है|
कितनी रंगबिरंगी सुंदर और सुलभ भाव ले थकता है
सिंदूर, गजरे, बिंदी लेकर विनय मन भरकर हंसता है|
बाज़ार भीड़ में झलक से मन देख बस मचलता
सुहागिन भाव पूछ तीज़ पास है चूड़ियाँ पलटता है|
साथ में जों चूड़ियाँ के पैकेट खरीदें मेहँदी भी देता है
शायद हो बेटी बहू की यादें प्रेम से बेचता लगता है|
— रेखा मोहन