“शुभोत्कर्षिणी”
दिनोदिन अलगू कमजोर होता जा रहा था, बुखार उतर नहीं रहा था। वर्षों पहले उसकी पत्नी की मौत हो गई थी। चार छोटे-छोटे बच्चें। घर की स्थिति, रोज कुआँ खोदो, रोज प्यास बुझाओ। बच्चों को पढ़ाना जरूरी समझता परन्तु आर्थिक कमी के कारण पढ़ाना कठिन था। फिर भी किसी बच्चे से मजदूरी कराने के लिए तैयार नहीं था। अलगू काम पर जाने के लिए घर से ज्यों निकलने लगा कि बेहोश हो गया। पड़ोसियों की मदद से चिकित्सक के घर पर लाया गया। मुआयना कर चिकित्सक दवाई टेस्ट की सूची थमा दी। कंगाल के हितैसी भी कंगाल ही होते हैं। चिंता की लहर दौड़ने लगी। सभी उलझन में ही थे कि लाल कमल से भरी टोकरी लेकर अलगू की बेटी, चिकित्सक के सामने आ खड़ी हुई।
“इसे लेकर मैं क्या करूँगी बेटी? यह दुर्गा माँ के लिए होता है।”
“जानती हूँ! आप इसमें से एक लाल कमल लेकर बोहनी समझिए डॉक्टर साहिबा और मैडम जी आप बाबा का इलाज शुरू कीजिए। मैं मजदूरी नहीं कर सकती, व्यापार तो कर सकती हूँ!”