कविता

आज का रावण

” आज का रावण ”

वध हुआ था तब एक रावण
जब सीता का हुआ था हरण।
थी वह तो सतयुग की कथा
आधुनिक युग की वही व्यथा।
नित नई घटित हो रही घटना
चाहे दिल्ली, मुंबई हो या पटना।
वही रावण, वही नारी चिर हरण
वही दुःशासन और वही दुर्योधन।
खुली सड़कों पर, नहीं कोई सभा
कोई निर्भया, सरला कोई आभा।
नारी नहीं है कोई भी सुरक्षित
हो निर्धन बच्ची या फिर शिक्षित।
हो कोई नाबालिग,युवती या प्रौढ़ा
शीलभंग करता नर, कर सीना चौड़ा।
जितना हो रहा समाज शिक्षित
क्यों हो रहे हैं मानव विक्षिप्त ।
किस सुख की कामना करता मन
कैसा सुख भोगना चाहता तन।
अपनी इंद्रियों पर नहीं कोई वश
लोभ,काम पूर्ति हेतु मानव विवश।
क्यों ऐसी मनुज की है दुर्दशा
मिटती नहीं है क्यों मन की पिपासा।
कुर्सी की माया भी बड़ा विचित्र
आवश्यकता नहीं है होना सच्चरित्र।
हो कितना भी क्यों ना बुरा व्यसन
मिलता सदा सम्मानीय आसन।
भ्रष्टाचार में चाहे डूबी हो गर्दन
चाहे नारी का करे कोई मान मर्दन।
उनके लिए नहीं कुछ भी निंदनीय
रहते सदा वे जग में वंदनीय।
मृग मरीचिका के पीछे भागता प्यासा
फिर देता अपने मन को वह दिलासा।
मिटती नहीं है फिर भी मन की प्यास
अधिक पाने की रहती मन में आस।
आज का रावण है व्यभिचार, भ्रष्टाचार
फैला रखे हैं जिसने सर्वत्र अनाचार।
करना है इन रावणों का वध मिलकर
सुगंधित होगा सुशासन पुष्प खिलकर।
निर्भय होकर तब ‌ उड़ेंगी तितलियां
होकर निडर पुनः खिलेंगी कलियां।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

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*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]