कविता : आज का मानव
आज का मानव
“ आज का मानव ”
आज, हरेक के जेब में मानव
आज, हरेक के पेट में मानव,
निकला है पेट से मानव
मर रहा है पेट के लिए मानव,
सड़क पर लेटा है मानव
अंतरिक्ष पर क्रीड़ा कर रहा है मानव,
मशीन बन रहा है मानव
समुंद्र की लहरें गिन रहा हैं मानव,
अनपढ़ से कुपढ़ बन रहा है मानव
शिक्षा में क्रांति की बातें कर रहा है मानव,
अच्छी- अच्छी बातें कर रहा है मानव
बुरे – बुरे काम कर रहा है मानव,
विश्व–शांति के लिए परेशान है मानव
अपने ही घर में लड़ रहा है मानव,
महामानव बनने में व्यस्त है मानव
एटम बम बना रहा है मानव,
सचमुच, अस्तित्व के लिए, “निधि”
आज, सबसे बड़ा खतरा बन रहा है मानव||