पराए बच्चे
दयाल बाबू आज फिर चोटिल होकर घर आए। घावों पर दवा लगाती हुई पत्नी बड़बड़ाने लगी।
“क्यों जाते हैं उस बस्ती में नशे के खिलाफ प्रचार करने के लिए। अभी तो थोड़ा बहुत पीट कर छोड़ दिया। कल को जान से मार दिया तो ?”
“जो भी हो इस डर से मैं चुप होकर नहीं बैठूंगा। वो लोग छोटे छोटे बच्चों को नशे का आदी बना रहे हैं।”
“पराए बच्चों की फिक्र है। कभी अपने बच्चों के बारे में सोंचा है।”
“अपने बच्चों के लिए तो अपना फर्ज़ निभा ही रहा हूँ। पर मेरे लिए वो बच्चे भी अपने हैं। मैं उन्हें भटकते नहीं देख सकता हूँ।”
दयाल बाबू ने रूई ली और खुद ही जख्म साफ करने लगे।