लघुकथा

प्रतीक्षा

रीमा सामने बैठे सचिन को ताक रही थी। अचानक सचिन की निगाह पड़ी तो आँखों ही आँखों में उसने पूँछा ‘ऐसे क्यों ताक रही हो?’
रीमा ने अपनी आँखें झुका लीं। तभी अंदर जाने का बुलावा आया। भीतर पहुँच कर दोनों ने रजिस्ट्रार के सामने दस्तखत किए। गवाहों ने भी दस्तखत किए। दोनों ने एक दूसरे को फूलों की माला पहनाई।
आज सचिन का पंद्रह साल का इंतज़ार खत्म हो रहा था। यह पंद्रह साल उसने बिना किसी शिकायत के अकेलेपन में बिताए थे। ताकि रीमा अपने पारिवारिक दायित्वों से मुक्त हो सके।

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है