कविता

कविता

जिंदगी की वीरानियों को समेटने की नाकाम कोशिशें ,
ले आती हैं इंसान को जब कभी दोराहे पर
बिखर जाता है एक अंधेरा से चारों तरफ ।

सुलगने लगता है शांत पड़ा अहसास भी
दहकती हुई अनगिनत भट्टियों की तरह ।
तपिश धूप की हो या विचारों की बहती धारा की ,
जला देती है मंजिलों की ओर जाने वाले पथ को भी ।

लहराता हुआ पर्दा भी दिखा देता है एक झलक जब चाँद की ,
एक सरसराहट सी दे जाती है जैसे चांदनी की छटा

मदहोशी का आलम न पूछना उस जलते हुए चिराग से ,
अनजान बनकर रहता है जो खुद के जलाए हुए आशियाने से ।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017