कविता

कविता

“कविता”

न मैं कवियत्री हूँ,
न मैं लेखिका,
सागर में जैसे उठतीं हैं लहरें ,
और किनारे से टकराकर
छोड़ जाती हैं अपनी निशां ।
ठीक वैसे ही ह्रदय सागर में
उठती भावनाओं की लहरें
छोड़ जाती है
अपनी निशां पन्नो पर
शब्दों के रूप में ।
शब्दों के इन मोतियों को
वाक्य के धागे में
पिरोने को
दुनिया कहती है “कविता ” ।

ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]