कविता
“कविता”
न मैं कवियत्री हूँ,
न मैं लेखिका,
सागर में जैसे उठतीं हैं लहरें ,
और किनारे से टकराकर
छोड़ जाती हैं अपनी निशां ।
ठीक वैसे ही ह्रदय सागर में
उठती भावनाओं की लहरें
छोड़ जाती है
अपनी निशां पन्नो पर
शब्दों के रूप में ।
शब्दों के इन मोतियों को
वाक्य के धागे में
पिरोने को
दुनिया कहती है “कविता ” ।
ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना