गज़ल
किसी हाल में न ज़ुल्म से डर जाना चाहिए
जी न सको इज्ज़त से तो मर जाना चाहिए
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गर चाहते हो याद करें लोग तुम्हें भी
जिसका भी हो सके भला कर जाना चाहिए
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महफूज़ रहना है तो बनो भीड़ का हिस्सा
जिधर की हो हवा बस उधर जाना चाहिए
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नादानियाँ इक उम्र तक ही लगती हैं अच्छी
रफ्ता-रफ्ता सबको सुधर जाना चाहिए
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थक-हार कर ज़रूरतों से मैंने किया अर्ज़
बहुत रात हो गई है अब घर जाना चाहिए
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।