खट्ठा-मीठा : हमारी बिल्ली, हमीं से म्याऊँ
उनको बिल्ली पालने का बड़ा शौक था। एक से एक खूबसूरत मुलायम बिल्लियों को पालना और उनके ऊपर हाथ फिराते हुए उनका मुँह चूमना उनकी मुख्य आदत थी। कभी कभी वे उनके बदन को भी प्यार से सहला देते थे। बिल्लियों को इन सब हरकतों पर कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वे उनको न केवल दूध-मलाई देते थे, बल्कि कभी कभी चूहे भी खिला देते थे।
उनका यह बिल्ली पालन शौक वर्षों तक चलता रहा। जब एक बिल्ली से उनका मन भर जाता तो वे तत्काल उसको भगाकर दूसरी बिल्ली पाल लेते थे। निकाली गयी बिल्ली इसे अपना भाग्य और समय का फेर समझकर मन मसोसकर रह जाती थीं और अपना कोई दूसरा मालिक खोज लेती थी, जो उसकी दूध-मलाई का प्रबंध कर सके। लगभग 20-22 वर्षों तक वे इसी तरह बिल्लियों से खेलते रहे। बिल्लियाँ आती जाती रहीं।
ऐसे ही एक बार जब एक बिल्ली से मन भर जाने पर उन्होंने उसे घर से निकल जाने का आदेश दिया, तो वह बिल्ली दूसरी बिल्लियों की तरह चुपचाप नहीं चली गयी, बल्कि उसने ‘मी टू’ करने की धमकी दे डाली।
वे घबरा गये- ‘यह ‘मीटू’ क्या होता है?’ बिल्ली ने कहा- ‘आपने मेरे बदन पर हाथ फेरा, मेरा मुँह चूमा। यह बात मैं सबको बता दूँगी।’
यह सुनते ही वे आग बबूला हो गये- ‘क्या बकती है? यह झूठ है। हमारी बिल्ली और हमीं से म्याऊँ! जा बता दे सबको।’
वे समझते थे कि बिल्ली ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेगी। पर वह बिल्ली गजब की निकली। उसने बाहर जाकर ‘मी टू-मी टू’ करके हंगामा खड़ा कर दिया। उसको देखकर कई ऐसी बिल्लियाँ भी ‘मी टू-मी टू’ करने लगीं जिनको दस-बीस साल पहले उन्होंने मन भर जाने पर निकाल दिया था।
— बीजू ब्रजवासी
कार्तिक कृ 3, सं 2075 वि (26 अक्तूबर 2018)