वो तीन कबूतर
रोज की तरह आज भी सैर पर वो तीन कबूतर मिले थे. उनके पास पहुंचते ही उन्होंने नजरें उठाकर मेरी ओर ऐसे देखा, मानो मुझे ‘दीदी, गुड मॉर्निंग’ कह रहे हों. मैंने भी बड़े प्यार से उन्हें ‘वेरी गुड मॉर्निंग भाई’ कहा. आज वे तीनों सड़क के दूसरी तरफ थे. मैंने सड़क पार कर उनसे पूछा- ”कबूतर भाई, आज उस पार कैसे पहुंच गए?”
”उस पार की सफाई हो गई है.” एक कबूतर बोला.
”क्या मतलब?” मुझे आश्चर्य तो होना ही था न!
”दीदी, हम स्वच्छता दूत हैं, तो स्वच्छता तो करेंगे ही न!” दूसरा कबूतर बोला.
”पर पिछली बार तो आपने कहा था-
शांति-दूत का यह संदेश,
चमके-दमके अपना देश,
स्वतंत्रता-समता सब पाएं,
हो कोई भाषा, धर्म या वेष.
तब आप शांति दूत थे, अब स्वच्छता दूत? यह कैसे?” मेरा आश्चर्य बढ़ता ही जा रहा था.
”दीदी, ऐसा है न, कि समय के साथ हमारी भूमिका भी परिवर्तित होती जाती है. पहले हम संदेश दूत थे. तब डाक विभाग और डाकिए तो थे नहीं, हरकारों को दौड़कर पहुंचने में बहुत समय लगता था, हम ही उड़कर फटाफट डाक पहुंचाया करते थे.” दूसरे कबूतर ने कहा.
”अरे वाह! यह तो सचमुच कमाल की बात है.” मैंने कहा.
”फिर आप लोगों ने विश्वयुद्ध करवा दिए, तो हम शांति दूत बन गए, अब स्वच्छता अभियान का बोलबाला है, तो हम स्वच्छता दूत बन गए.” तीसरे और वरिष्ठ कबूतर ने गर्दन ऊंची करते हुए कहा, मानो उसे कबूतरों की इस समसामयिक और सकारात्मक भूमिका पर गर्व हो रहा हो.
शीतल-मंद-सुगंधित पवन का आनंद लेते हुए, समय के अनुकूल अपने व्यवहार और भूमिका में परिवर्तन करने का नवीन संदेश लेकर मैं ताजातरीन होकर घर आई.
सैर करते हुए अकेले होने पर भी मुझे कभी अकेलापन नहीं लगता, क्योंकि भगवान तो हर समय हमारे साथ होते ही हैं. इसके अतिरिक्त रास्ते में मिलने वाले पंछी, पेड़-पौधे सब हमसे बातचीत करते ही रहते हैं और नई-नई बातें सिखाया करते हैं. आजकल सैर पर मुझे रोज तीन कबूतर मिलते हैं. चलिए मैना मुझसे मिलने आ गई है, देखूं क्या कहती है.