“मुक्तक”
चढ़ा लिए तुम बाण धनुर्धर, अभी धरा हरियाली है।
इंच इंच पर उगे धुरंधर, किसने की रखवाली है।
मुंड लिए माँ काली दौड़ी, शिव की महिमा न्यारी है-
नित्य प्रचंड विक्षिप्त समंदर, गुफा गुफा विकराली है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
चढ़ा लिए तुम बाण धनुर्धर, अभी धरा हरियाली है।
इंच इंच पर उगे धुरंधर, किसने की रखवाली है।
मुंड लिए माँ काली दौड़ी, शिव की महिमा न्यारी है-
नित्य प्रचंड विक्षिप्त समंदर, गुफा गुफा विकराली है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी