लघुकथा

काम बोलता है

खिलंदड़ी मैडम चुनाव जीतकर एम एल ए बन चुकी हैं. उनके पहनावे, रहन-सहन और बोलचाल में कोई फ़र्क नहीं आया है, हां उनका काम बढ़-चढ़कर बोल रहा है. यों तो वे कभी खाली होती नहीं, फिर भी कभी-कभी कार से आते-जाते उनको चुनावी सभाओं की याद आ ही जाती है.
एक पुरानी-सी कार से चुनाव सभा के लिए खिलंदड़ी जी अकेली ही उतरी थीं, कोई लाव-लश्कर साथ नहीं था. गेट पर फूलमाला-स्वागत आदि का भी कोई इंतज़ाम नहीं था. वे झट से ओपन स्टेज पर चढ़ गईं और सब लोग नीचे दरी पर बैठ गए. खिलंदड़ी जी ने झट से माइक हाथ में पकड़ लिया और बोलीं-
”यहां उपस्थित और अनुपस्थित सभी महानुभावों के अंदर विराजमान आत्मस्वरूप को हमारा प्रणाम. आइए सबसे पहले अपने-अपने इष्टदेव को नमन करते हुए हम प्रार्थना करते हैं. (खिलंदड़ी आंखें मूंदकर गाती है, सब उसके पीछे-पीछे गा रहे हैं)-
”हे गिरधर गोपाल लाल, तू आ जा मेरे आंगना
माखन-मिश्री तुझे खिलाऊं और झुलाऊं पालना-

केसर भर के खीर पकाई, दाल-चूरमा और बाटी
माखन-मिश्री मटकी भरी है, खाना हो तो खावना.”
बात-बात पर हंस देने के कारण वाली खिलंदड़ी उपनाम वाली चुनाव प्रत्याशी ने कहना जारी रखा, ”आपने मुझे चुनाव के लिए खड़ा किया है, तो आप यह तो जानते ही हैं, कि मेरे पास धन का अंबार नहीं है, उसकी मुझे ज़रूरत भी नहीं है. काम करने के लिए धन की नहीं, इच्छा शक्ति, मन की शक्ति और दो बाज़ुओं (यह भी आप जानते ही हैं, कि मेरी एक बाजू ऊपर नहीं उठती है, लेकिन मेरे सब काम इसी बाजू की ताकत से होते हैं—–हंसी—-) की ज़रूरत है. आपके बैठने के लिए कुर्सियों का इंतज़ाम नहीं है, मैं भी कुर्सी पर नहीं बैठ रही हूं,”
तभी एक सज्जन ने हाथ खड़ा किया, शायद वह कुछ बोलना चाहता था. खिलंदड़ी ने कहा- ”हां जी, फरमाइए.”
”मैडम आपकी इच्छा शक्ति और मन की शक्ति से हम भलीभांति वाकिफ़ हैं. मैं आपके नेक कामों के बारे में कुछ कहना चाहता हूं.”
खिलंदड़ी ने हंसते हुए कहा- ”यह सब तो हम जानते हैं, ऐसे नेक काम तो आप में से भी बहुत लोग करते होंगे. हमारे और आपके काम को बोलना चाहिए. आप लोग अपनी-अपनी समस्याएं बताइए, ताकि मैं अपना चुनाव का लक्ष्य और एजेंडा तय कर सकूं. फ़ालतू के वादे मैं नहीं करना चाहती.”
”एक बात और कहना चाहूंगी, मुझे वोट दोगे और जिताओगे, तो मेरे साथ आपको भी कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना पड़ेगा, काम करना पड़ेगा. कारण स्पष्ट है. सरकार हमें लुटाने के लिए तो पैसा देगी नहीं, जितना दे सकेगी उतना ही देगी. इसलिए हम सब मिलकर योजना बनाकर उसी सीमित धन से आगे बढ़ेंगे और काम करेंगे.”
अत्यंत सौहार्दपूर्ण माहौल में सवाल-जवाब का दौर चलता रहा, कि सभा का नियत समय समाप्त हो गया. खिलंदड़ी ने हंसते-हंसते कहा- ”आज की सभा को टेम है गयो, अब आगे थारी मर्जी है. जैसे हमने गिरधर गोपाल लाल से कही ”खाना हो तो खावना”, वैसे ही थारी मर्जी पर है ”मनें वोट पाना हो तो पावना”. जय श्री कृष्ण.”
(इसी के साथ खिलंदड़ी मैडम ओपन स्टेज से कुर्सी उठाकर दाहिनी बाजू पर लाद ली (बांईं बाजू तो ऊपर उठती ही नहीं), और स्टेज से उतर गईं. 
नोटों ने नहीं ऐसी ही सौहार्दपूर्ण सभाओं और निःस्वार्थ भाव से आम जनता की भलाई के कामों ने उनको एम एल ए बनवा दिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “काम बोलता है

  • लीला तिवानी

    हमारे पड़ोस में सचमुच ऐसे जनसेवक रहते हैं, जो अपना अपार धन लगाकर जनसेवा में लगे रहते हैं, आबाल वृद्ध उनके काम में सहायक होते हैं. खिलंदड़ी मैडम भी उनमें से एक हैं. हमारे आसपास स्वच्छता के बारे में लोग बहुत सजग हैं. बरसों से जो मैदान खड्डों और अवांछिंत गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था, आज वह शानदार पार्क के रूप में विकसित और गुलज़ार हो गया है. यह सब काम सुरेशचंद्र शर्मा जी के सद्प्रयासों से संपन्न हुआ है. शर्मा जी भी खिलंदड़ी मैडम के ब्लॉक में ही रहते हैं.

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