साहिबे दस्तार होने चल दिए
साहिबे दस्तार होने चल दिए
फूल भी अब ख़ार होने चल दिए
यूँ बने रिश्ते तिजारत, आपसी
मस’अले अख़बार होने चल दिए
भावनाएं इस कदर बिकने लगीं
धर्म भी बाज़ार होने चल दिए
वो जिन्हें औजार बनना था, उन्हें
क्या हुआ हथियार होने चल दिए
जब सुना जलवा तुम्हारे हुस्न का
डाॅक्टर बीमार होने चल दिए
जो कहानी में कहीं थे ही नहीं
लोग उपसंहार होने चल दिये
लोग धर्मों के बहाने प्रेम की
राह में दीवार होने चल दिए
पार हद जब नफ़रतें करने लगीं
गीत मेरे प्यार होने चल दिए
सतीश बंसल
२८.१०.२०१८