राजनीति बदल गया
सुबह उठकर परसाई साहब के तस्वीर को धूलमुक्त किया, अचानक नजर तस्वीर पर गई
कितने मासूमियत भरे निगाह मुस्कुरा रहे थे,
एक बार लगा कि बस नजर की दोष होगी।
आश्चर्य बिल्कुल न हुआ, कोई अंधविश्वासी थोडे़ हूं जो हर बात का बखेडा़ खडा़ कर दे
कि परसाई साहब मुस्कुरा रहे थे।
आखिर कलयुगी परसाई भक्त हूं जो सामने तस्वीर रखकर बडे़ लोगो को हिला सकते है।
अरे नास्तिक हूं मगर बिना श्रध्दा के कही कोई पूछ नही चाहे कोई भी जगह हो ,
राजनीति हो, कवि सम्मेलन हो या फिर कोई सरकारी काज हो जहां पर श्रध्दा और भक्ति के बिना कार्य एक कदम ना चले, शरीफ बंदा ठहराता जो चमच्चा और रिश्वत को ऐसे जोड़ दिया।
अरे जनाब मै किसी धर्म का, आस्था का ठेस नही पहुंचा रहा हूं, जब देखो कुछ लोग इतिहास में घुसकर समाज का विभाजन पर लगे है़।
अम्मा बोली” बैठकर बस भारी बाते बतियाता है अरे कोई काम करेगा।
“काम जरूर मिल जाये कर लेगें।
नास्तिक हूं परसाई जी के तस्वीर को अगरबत्ती दिखाकर अपने धड़ियाली आंसू बहा रहे थे
हंसो मत परसाई जी मेरे जैसे बहुत बेरोजगारो के सहारा बनकर आ जाते है, अपने व्यंग्य से गुदगुदी करते सीधे सिस्टम को प्रेरणा देते,
खैर अब प्रेरणा कौन लेता सब पेडा़(मिठाई) खाने वाले है।
चुनाव का इतंजार बेकरार बना रहता अरे किसी पार्टी के सिर पर लपक कर बैठ जाओ
मलाई काटो,
जब चुनाव खत्म पता चलता है कि हम नही वो हमारे सिर पर बैताल से पडे़ फिर जैसे चुनाव खत्म फुर्र हो जाते।
कौन हो,कहां के हो,नही पहचाना सो रहे
अभी दिल्ली में दिल्लगी कर रहे है।
जैसे कोई ठगा महसूस कर रहे मानो जैसे चिड़िया बन्दूक चलने से पहले उड़ गई,
समाचार पत्र सुबह से उधेड़ रहा हूं कही उनका पता चल जाये
पता चले जब वो स्कैम से फुर्सत में हो तब ना।
वैसे भी आजकल आरोप लगाकर बच निकलने की कला बेहद चर्चा में पहले बोला न कि कुछ लोग इतिहास में घुसकर पुरानी स्कैम उजागर करते कि तुमने किया ना हम कैसे पीछे हाथ रखेगें।
हर घोटाले का जवाब घोटाले से देकर मुंह बंद कर देते है,
बयानबाजी मानो कबूतरबाजी हो चला जब देखो जबान उड़ जाता है।
अरे भाया वैसे भारत की शिश्रित जनता देखकर अनदेखा करती है मगर कब तक,,,
हरिशंकर परसाई जी के पूजा का वक्त हो चला है, फिर कभी कबोधन करेगें।
— अभिषेक राज शर्मा
जौनपुर उप्र०