प्रथम प्रणय
” प्रथम प्रणय ”
प्रथम प्रणय की वो अनुभूति
वो निश्छल दो नैनों की भाषा ,
ह्रदय की वो आतुरता और
मन की निशब्द अभिलाषा ।
प्रयास तुम्हारी आंखों का
पढ़ना मेरी आंखों की भाषा ,
अंतस तक पहुँचकर मेरे
ह्रदय की बात जानने की जिज्ञासा ।
पढ़ ली थी मैंने भी
तुम्हारे दो नैनों की भाषा,
पलकें मेरी स्वतः ही झुक गई
करते रह गये तुम प्रतीक्षा ।
निशब्द तुमने कह दिया था
बह रही ह्रदय में प्रेमामृत-धारा,
मैं समझकर भी अनजान बनी रही
तुम्हारी व्याकुलता कह गई सच सारा ।
आंखें मेरी ढूंढ़ती, तुम्हें इधर-उधर
ह्रदय की बात छुपाने की करती चेष्टा,
पर कहाँ छिप पाया ह्रदय-ज्वार
छलक उठी नैनों में मेरी प्रेम-निष्ठा ।
प्रथम प्रणय का प्रथम स्पर्श
तीव्र वो ह्रदय का धड़कना
रोमांचित कर गया था मुझे
प्रथम बार तुमसे, मेरा गले लगना ।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल