आवरण
सुषमा के जन्मदिन पर सारे दिन आने-जाने वालों की चहल-पहल के बाद अब जाकर रात को निकी को अपनी खुशी पर खुश होने का, यादों के दरीचे खोलने का अवसर मिला था.
सुबह-सुबह सुषमा हाथ में मोबाइल लिए अपने कमरे से भागती हुई आई थी-
”ओह ममा, आप नारियल के लड्डू बना रही हैं! जल्दी से मुंहं मीठा करवाइए, तो आपको खुशखबरी सुनाऊं.” सुषमा ने चहकते हुए कहा.
”ले बेटी, मुंहं मीठा कर और बता तेरे जन्मदिन पर क्या खुशखबरी आई है?”
”देखो ममा, वो आपने अभी जो पेंटिंग बनाई थी न! उसको प्रथम पुरस्कार मिला है.”
”क्या बात कर रही है! ये कैसे हो सकता है?”
”ये देखिए, आपका नाम, फोटो और पेंटिंग.” सुषमा ने मोबाइल में दिखाते हुए कहा था.
”सुषमा, तुम मेरी बहू ही नहीं, मेरी टीचर-गाइड सब कुछ हो.” निकी ने प्यार से कहा था.
सचमुच है भी तो सही न! और नजर भी कितनी तेज है उसकी! शादी के बाद हनीमून से आते ही उसने ऑर्ट क्लासेज शुरु की थीं. चॉकलेट बनाने की क्लास में निकी भी चॉकलेट की पैकिंग करने लगी थी. सुषमा ने तभी ताड़ लिया था, कि ममा की उंगलियों में ऑर्ट है. जो भी काम करती हैं, बड़ी खूबसूरती से.
फिर एक दिन उसने ही यह कहकर कि ”शैलजा आंटी भी तो पेंटिंग सीख रही हैं न, आप क्यों नहीं सीख सकतीं!” उसे पेंटिंग की क्लास में बैठने को राजी किया था.
पहले दिन ही जब मैंने पेंटिंग करनी शुरु की, तो सब अपनी-अपनी कूची छोड़कर उसे ही पेंटिंग बनाते देखने लगीं. उसके बाद तो उसकी एक-से-एक खूबसूरत पेंटिंग्स बनती और बिकती रहीं.
तभी से उसे उस दिन की याद आने लगी थी, जिस दिन दादी ने उसकी आधी बनी हुई पेंटिंग वाला कैनवास ही खिड़की से बाहर फेंक दिया था और कहा था- ”लड़की हो, कुछ घर का काम-काज सीखो-करो, कल को ससुराल जाकर हमारा नाम डुबो दोगी.” ममा भी कुछ नहीं कर पाई थीं. उस दिन से ही उसने अपने अंदर के कलाकार को मार दिया था और 40 साल तक किसी से जिक्र भी नहीं किया था.
आज बहू ने उस कलाकार का आवरण हटा दिया था.
यह कथा सुखद और सकारात्मक तो है ही, साथ ही सच्ची भी है. हमने निकी के सुखद परिवर्तन से उसके चेहरे की चमक को बढ़ते हुए देखा है. बहू को ऐसे अनूठे व्यवहार के लिए बराबर सराहा भी है.