कविता

उल्झन में अब कलम फसी……..

दिव्य अंग की परिभाषा में
चीर फाड़ जब किया गया
परिभाषा बदली बीच सभा में
सबको पांडव बना दिया
दिव्य अंग की……..

दिव्य अलौकिक की परिभाषा
साहित्य जगत की ताज बनी
कलमकार सब देख रहे
ये आज यहां मोहताज बनी
जो आस पास न समझ सके
उनको हरि जन बना दिया
दिव्य अंग की……..

कमजोर यहां अब काव्य हुआ
हर कोई इसको फोड़ रहा
बस अपनी जान बचानें को
हर कोई इसे निचोड़ रहा
इसके वारिस सब मूक हुये
सूर्य को दास बना दिया
दिव्य अंग की……..

लिख दो दलित तो अतिसुन्दर
कहने में अपराध है
उल्झन में अब कलम फसी
शब्दों में नही स्वाद है
जिसे बूंद नही दी अमृत की
यहां उसका (राज) बना दिया
दिव्य अंग की……..

राज कुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782