उल्झन में अब कलम फसी……..
दिव्य अंग की परिभाषा में
चीर फाड़ जब किया गया
परिभाषा बदली बीच सभा में
सबको पांडव बना दिया
दिव्य अंग की……..
दिव्य अलौकिक की परिभाषा
साहित्य जगत की ताज बनी
कलमकार सब देख रहे
ये आज यहां मोहताज बनी
जो आस पास न समझ सके
उनको हरि जन बना दिया
दिव्य अंग की……..
कमजोर यहां अब काव्य हुआ
हर कोई इसको फोड़ रहा
बस अपनी जान बचानें को
हर कोई इसे निचोड़ रहा
इसके वारिस सब मूक हुये
सूर्य को दास बना दिया
दिव्य अंग की……..
लिख दो दलित तो अतिसुन्दर
कहने में अपराध है
उल्झन में अब कलम फसी
शब्दों में नही स्वाद है
जिसे बूंद नही दी अमृत की
यहां उसका (राज) बना दिया
दिव्य अंग की……..
राज कुमार तिवारी (राज)