भजन/भावगीत

कृष्ण भक्तिनी राधा

” कृष्ण भक्तिनी राधा

रंगी मैं तो श्याम रंग में
दूजा रंग कोई न चढ़ पाए रे ,
ये रंग ऐसा चटख रंग है
सब रंग फीका पड़ जाए रे ।

सुन तेरी मुरलिया की धुन
सुध-बुध मैं बिसारी रे ,
नित-नित यमुना तट पर
काहे श्याम बंसी बजाए रे ।

मैं तो तेरी प्रेम पुजारिनी
फिर काहे मोहे सताए रे ,
ताने मारे सखियाँ, सास,ननदिया
तू तो सारी बतियाँ जाने रे ।

मैं अभागन तेरे कारण
जग मोहे कलंकिनी जाने रे ,
न बजा तू मुरलिया मधुर
बतियाँ काहे न मेरी माने रे ।

तू रसिया सब मन बसिया
अकेली राधा कलंकित होए रे ,
नाचे मगन तू गोपियों के संग
बंसी काहे राधा नाम पुकारे रे ।

उर में भर ली श्याम तेरो नाम
अब चित्त को कुछ न भाए रे ,
रात-दिन रटूं श्याम-श्याम
नाम दूजा न होठों पर आए रे ।

पूर्णतः मौलिक- ज्योत्स्ना की कलम से ।

 

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]