आती न किसी काम, शराफ़त है अब मेरी
बदनामियों से बढ़ रही शुहरत है अब मेरी
जीने लगा हूँ अपनी ही शर्तों पे जब से मैं
देखो सँवरने लग गयी किस्मत है अब मेरी
दौलत कमाने में ही अबस उम्र कट गई
दुनिया में यश कमाने की हसरत है अब मेरी
अदना सा आदमी था कोई पूछता न था
शेरो सुख़न से बढ़ गयी क़ीमत है अब मेरी
क्यों घर का आईना मुझे पहचानता नहीं
क्या इस क़दर बदल गयी सूरत है अब मेरी
उस पार से जैसे कोई आवाज़ दे रहा
शायद किसी को सख़्त ज़रूरत है अब मेरी
बरसों से तुझ को क़ैद में रक्खा है जिस्म ने
उड़ जा ऐ रूह तुझ को इज़ाज़त है अब मेरी
शायद किसी के इश्क़ का बीमार हो गया
अज्ञात लाजवाब तबीयत है अब मेरी
— अजय अज्ञात