दिवाली की दौलत
चंद फुलझड़ियां , कुछ अनार
जान पड़ते दौलत अपार …
क्या जलाए , क्या बचाएं
धुन यही दिवाली यादगार बनाएं
दीपावली की खुशियां सब पर भारी
लेकिन छठ, एकदशी के लिए
पटाखे बचाना भी तो है जरूरी
आई रोशनाई, छू मंतर हुई उदासी
पूरी रात भागमभाग , लेकिन गायब उबासी
जमीन – आसमां पर पटाखों के तमाशे
माल पुए से लगते खोई – बताशे
जी भर जिमो पूजा का प्रसाद
फिर अवश्य लो बड़े – बड़ों का आर्शीवाद
पूरी रात लगे हिसाब, किसे दिया किसे नहीं दिया प्रसाद
— तारकेश कुमार ओझा