सामाजिक

कोरोना काल या काल है कोरोना …??

ये कोरोना काल है या दुनिया के  लिए काल है कोरोना ??   हाल में  कानपुर जाने का कार्यक्रम रद  किया तो मन में  सहज ही यह सवाल उठा । लेखकों के  एक सम्मेलन में शामिल होने का  अवसर पाकर मैं काफी खुश था । सोचा कानपुर से लखनऊ होते हुए गांव जाऊंगा और अपनों  से […]

संस्मरण

अगवा राजधानी एक्सप्रेस और घने जंगल में  रात्रि जागरण !! 

खड़गपुर : राजधानी एक्सप्रेस को घंटों बंधक बनाए रखने की  कभी न भूलने वाले कांड में  एनआईए ने छत्रधर महतो को गिरफ्तार क्या किया , घने जंगल में  बीती उस भयावह ठंडी रात की  पूरी घटना मेरे आंखों के  सामने एक बार फिर  फ्लैश बैक की तरह नाचने लगी । 2009  के  उस कालखंड में  […]

राजनीति

भाजपा को क्यों डरा रहा है जंगल महल ?? 

संसदीय चुनाव 2019 में  भारतीय जनता पार्टी की  झोली भर देने वाला जंगल महल  चंद महीनों बाद ही इतना उदासीन क्यों है । इस उदासीनता का  कैसा प्रभाव आसन्न विधानसभा चुनाव परिणाम पर पड़ेगा । जंगल महल की  राजनीति में  इन दिनों मुख्य रूप से इन्हीं सवालों के  जवाब तलाशे  जा रहे हैं । बता दें […]

यात्रा वृत्तान्त

हर ट्रेन की यही कहानी , टूटे फ्लश – बेसिन में  पानी !! 

हम भारतीयों की किस्मत में ही शायद सही – सलामत यात्रा का योग ही नहीं लिखा है । किसी सफर में सब कुछ सामान्य नजर आए तो हैरानी होती है । कोरोना काल में उत्तर प्रदेश की मेरी वापसी यात्रा का अनुभव कुछ ऐसा ही रहा । कई मामलों में  नए अनुभव के बावजूद चिर […]

यात्रा वृत्तान्त

कोरोना काल , रेल यात्रा बेहाल …!!

वाकई भौकाल मचाने में हम भारतीयों का कोई मुकाबला नहीं । बदलते दौर में दुनिया दो भागों में बंटी नजर आ रही है । एक स्क्रीन की दुनिया और दूसरी असल दुनिया । इस बात का अहसास मुझे कोरोना की नई लहर के बीच की गई रेल यात्रा के दौरान हुआ । भांजी की शादी […]

राजनीति

राजनीति के ‘सदा मंत्री’ और रामविलास पासवान

भारतीय राजनीति में रामविलास पासवान का उदय किसी चमत्कार की तरह हुआ। ८०-९० के दशक के दौरान स्व . विश्वनाथ प्रताप सिंह की प्रचंड लहर में हाजीपुर सीट से वे रिकॉर्ड वोटों से जीते और केंद्र में मंत्री बन गए। यानि जिस पीढ़ी के युवा एक अदद रेलवे की नौकरी में जीवन की सार्थकता ढूंढ़ते […]

संस्मरण

बर्फीली रात, अयोध्या के पास !

अदालती फैसले के  बहाने 6 दिसंबर 1992 की चर्चा छिड़ी तो दिमाग में 28 साल पहले का  वो वाकया  किसी फिल्म की तरह घूम गया । क्योंकि उन बर्फीले दिनों में  परिवार में हुए  गौना समारोह के  चलते मैं अयोध्या के  पास ही था । परिजन पहले ही गांव पहुंच चुके थे । तब  मैं […]

कविता

बरगद की छांव 

बुलाती है गलियों की  यादें मगर ,  अब अपनेपन से कोई नहीं बुलाता । इमारतें तो बुलंद हैं अब भी लेकिन , छत पर सोने को कोई बिस्तर नहीं लगाता । बेरौनक नहीं है चौक – चौराहे पर अब कहां लगता है दोस्तों का  जमावड़ा  । मिलते – मिलाते तो कई हैं मगर हाथ के […]

कविता

खबरों की भीड़ में

खबरों की  भीड़ में , राजनेताओं का  रोग है . अभिनेताओं के टवीट्स हैं . अभिनेत्रियों का फरेब है . खिलाड़ियों का  उमंग है अमीरों की अमीरी हैं  . कोरिया – चीन है तो अमेरिका और पाकिस्तान भी है . लेकिन इस भीड़ से गायब है वो आम आदमी जो  चौराहे पर  हतप्रभ खड़ा है […]

कविता

जब बुखार बन गया फीवर

एक था गबरू बन गया गब्बर देश – दुनिया में  खूब मचाया अंधेर नए जमाने में  उसी के  रीमेक की  तरह बुखार बन गया फीवर जिसके नाम से अब  दुनिया  कांपे  थर – थर नाम सुनते ही क्या राजू क्या राजा पसीने से हो रहे तर – बतर बुखार वाले को देखते  ही क्या छोटे […]