ग़ज़ल
जी रहा इंसान अब तो गंदगी की जेल में
बोलि भी लगने लगी हैं जिंदगी की सेल में
कौन अब किसको बचाये हर तरफ सिसकारिया
मौत का तांडव मचेगा अब चमन के बेल में
हर दिवाली हो दशहरा में हवा लेती है दम
पेड पौधे भी कटे हैं इस तरह के मेल में
बढ रहे उद्योग , वाहन रोजगारोे के लिये
हो रही दूषित हवा इनके निकलते तेल में
पावनी गंगा हो यमुना हर नदी बीमार हैं
फिर भी नेता मस्त हैं अपने ही अपने खेल में
इक तरफ बारिश हुयी तो इक तरफ बारिश खतम
हर तरफ फैली फैली तबाही जिंदगी की रेल में
— ओम नारायन कर्णधार