गीतिका – एक दीवाली ऐसी भी
रौशन करें चराग़ आज मुफ़लिस के घर में
उम्मीदों के गुल ख़िल जाएं उनके भी दर में
कुछ हम ऐसा करें दीवाली उनकी सज जाए
लगे चमकने तारे टिम टिम उनकी नज़र में
रंग बिरंगी फुलझड़ी कुछ आतिशबाजी हो
खुशियां मिलके फैलाएं हम उनके बसर में
नूर ख़िले उनके भी रुख़ पे आराईश ऐसा हो
यूं पूजा हो उठें दुआएं कल्बो जिगर में
बांह फैले भरोसे की, श्रृद्धा ले आए विश्वास
खुशियों के कारवां भी, आने लगे डगर में।
— पुष्पा “स्वाती”