दहेज
जो पहले माना जाता था
एक उपहार,
लेकिन…
उसी के कारण
आज नारी हो रही है लाचार।
दहेज के धन से
भरते जो आज
अपने घर के भण्डार,
माने जाते हैं
वही अब सबसे
ज्यादा समझदार।
आज अक्सर
सम्मान के रूप में करते हैं
जो दहेज से लड़की की पहचान,
उसी के न मिलने पर
परेशान करना बन गई है
उनकी शान।
कब तक फंसी रहेगी
नारी
इस दहेज के दलदल में,
क्या? मुक्ति मिल पायेगी उसे
दहेज रूपी इस दानव से।
अगर देना ही
चाहते हो नारी को
खुशियाँ अपार,
तो…
न दहेज लेना
और न कभी देना
बना लो इसे अपने जीवन का आधार।
होगा यही
इस समस्या का
वास्तविक समाधान,
नारी समाज को
मिलेगा इसी से
सच्चे मन से सम्मान।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट “स्नेहिल”