गीत/नवगीत

गीत

चाह है तेरे लिए कोई गीत गाऊँ
शब्दों से पाषाण में स्पंदन जगाऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ

भूमि के उर तप्त को कर दे जो शीतल
व्योम की किसी अप्सरा की भाँति चंचल
धवल, पावन चंद्रिका सा रूप अतुलित
जो बढ़ाए मिलन की उत्कंठा प्रतिपल
कपोल-कल्पित विश्व में करके मैं विचरण
मंद-मंद मन ही मन में मुस्कुराऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ

किसी दुल्हन सा दिव्य श्रृंगार करके
आई हो तुम नयनों में अभिसार भरके
ऐसे चल दी पल दो पल मेरे पास रूककर
समय की मुष्टि से जैसे रेत सरके
प्राप्त हो जाए यदि सहचर्य तेरा
प्रत्येक रात्रि को मैं दीपोत्सव मनाऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ

दृगों को मेरे प्रणय-रश्मि कब रंगेगी
युग-युगांतर की प्रतीक्षा कब फलेगी
मर्त्य में आभास दे जो शाश्वत का
ऐसी मलयानिल न जाने कब चलेगी
तेरे मन-मंथन से उपजे सुधा-रस का
पान करके मैं चिरंजीवी कहाऊँ
मौन के भी कंठ में जो स्वर जगा दे
अद्भुत, आलौकिक सुर कोई ऐसा सजाऊँ

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]