‘ग्रीन दिवाली’, ‘सेफ दिवाली’
हर दिन अपने में नई खूबसूरती समेटे हुए होता है,
प्रकृति की इस खूबसूरती में हमारा भी कुछ फ़र्ज़ होता है,
स्मॉग की मोटी चादर को न बनने देने के लिए,
हमें बहुत-सी सावधानियां बरतने का ध्यान रखना होता है.
दीपावाली की आप सबको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं. झूमता-नाचता दीपावली का त्योहार खुशियों का पैग़ाम लेकर आ गया है. खुशियों के पैग़ाम के साथ और भी बहुत-से संदेश (संदेश मिठाई भी) लेकर आ गया है. हमारे पास कुछ संदेश पहुंचे हैं, आप भी देखिए-
1.दीपावली साफ-सफाई और स्वच्छता का त्योहार है. साफ-सफाई और स्वच्छता का ध्यान रखिए, पर कचरा सही जगह फेंकिए, इधर-उधर नहीं.
2.दिवाली से पहले ही प्रदूषण और स्मॉग की मोटी चादर ने दिल्ली-एनसीआर को घेर रखा है. इस स्मॉग का कारण सिर्फ पराली जलाना नहीं है, निजी वाहनों का अंधाधुंध प्रयोग करना है. वाहनों के अंधाधुंध प्रयोग से ट्रैफिक जैम भी होता है और पर्यावरण भी प्रदूषित होता है. यह भी स्मॉग का एक बड़ा कारण है. अतः अपने निजी वाहन कम-से-कम निकालिए. धनतेरस के दिन ही हजारों की संख्या में वाहन कई घंटों जाम में फंसे रहे. महिपालपुर से लेकर गुरुग्राम के उद्योग विहार तक भारी जाम देखने को मिला है.
3.घर की मिठाइयां बनाइए, बाहर की मिलावटी मिठाइयों से बचिए.
4.दिवाली पर जहां तक संभव हो पटाखे जलाने से बचें क्योंकि पटाखों का धुंआ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है और स्मॉग का एक बड़ा कारण भी.
5.ई-पटाखे मार्केट में आ गए हैं. इनमें रोशनी और आवाज तो है, लेकिन प्रदूषण नहीं. दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण और जहरीले स्मॉग के कहर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों को लेकर सख्ती दिखाई है. इस सख्ती के बाद से इस बार मार्केट में ई-पटाखों की बिक्री में काफी तेजी आई है. इन पटाखों में रोशनी और आवाज तो होती है, लेकिन धुआं नहीं निकलने के कारण प्रदूषण नहीं होता है. इस बार ई-पटाखे जलाएं.
6.दीपावली पर तीन ‘ब’ का विशेष ध्यान रखें, बुजुर्ग-बीमार-बच्चे.
7.प्लास्टिक बैग यूज न करें. प्लास्टिक पर बैन लगने के बावजूद बड़ी संख्या में दुकानदार और खरीददार अब भी प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं. प्लास्टिक मिट्टी के उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाता है और ये आसानी से नष्ट भी नहीं होता. पर्यावरण संरक्षण में छोटा सा योगदान देते हुए आप चाहें तो कपड़े के या जूट के बने बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं.
8.गिफ्ट पैक करने के लिए ग्रीन रैपर-
गिफ्ट पैक करने के लिए भी बड़े पैमाने पर प्लास्टिक रैपर का इस्तेमाल होता है. न्यूज पेपर से बने या ग्रीन फैब्रिक से बने रैपर का इस्तेमाल करें या ब्राउन बैग यूज करें. आप चाहें तो अपनी सुविधा के हिसाब से घर पर ही गिफ्ट रैपर बना सकते हैं. इसके लिए चार्ट पेपर यूज करें और क्रिएटिव डिजाइन बनाकर गिफ्ट को अच्छे से रैप करें.
9.एलईडी लाइट ऊर्जा की बचत करने वाले उत्पादों में एक उपयोगी आविष्कार है. लोग अनावश्यक बिजली के खर्च से बचने के लिए इसे खरीदते हैं, लेकिन इससे पर्यावरण की भी सुरक्षा होती है. इस दिवाली साधारण लाइट्स खरीदने की बजाए एलईडी लाइट्स खरीदें. इसे बनाने में गैलियम फॉस्फाइड का इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से कम ऊर्जा में भी यह अच्छा प्रकाश देता है.
10.फूड वेस्टेज को करें कम, फिर न होगा कोई ग़म.
दिवाली पर वैसे लोग जो सुख-सुविधा संपन्न हैं, वे नए कपड़े और मिठाइयां खरीदते हैं. कई बार हम खाने-पीने की जितनी चीजें खरीदते हैं, उसे पूरा खत्म नहीं कर पाते और वह बर्बाद होकर डस्टबिन में जाता है. इस साल दिवाली के मौके पर फूड वेस्टेज को कम करने में मदद कर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें और गरीब बच्चों व परिवारों को मिठाइयां व कपड़े बांटें. ऐसा करने से आपके साथ-साथ दूसरों की दिवाली भी होगी हैप्पी.
11.घर के साथ मस्तिष्क के जाले भी साफ करें-
दिवाली पर हम घर के जाले तो साफ करते ही हैं, उसके साथ ही मस्तिष्क के जाले भी साफ करने भी आवश्यक हैं. मस्तिष्क के जाले भी साफ करना मुश्किल जरूर है, नामुमकिन नहीं. मानव मस्तिष्क शरीर का एक आवश्यक अंग होने के साथ-साथ प्रकृति की एक उत्कृष्ट रचना भी है. देखने में यह एक जैविक रचना से अधिक नहीं प्रतीत होता. परन्तु यह हमारी इच्छाओं, संवेगों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, चेतना, ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व इत्यादि का केन्द्र भी होता है. बस सकारात्मकता अपनाकर, वैर भाव को भुलाकर मस्तिष्क के जाले साफ किए जा सकते हैं. यह काम अत्यंत आवश्यक है.
12.अनेक लोगों ने दिवाली पर लेन-देन बंद कर दिया है. इससे बहुत लाभ होते हैं.
1.मन में रंजिश नहीं होगी, कि मैंने इतना दिया, उसने इतना दिया.
2.इसी तरह मैंने ऐसा दिया, उसने वैसा दिया से भी रंजिश बढ़ती है.
3.लेन-देन से फालतू का खर्च हो जाता है और मिठाइयां-फल अधिक आ जाने से जबरदस्ती खाए जाते हैं या खराब हो जाते हैं.
4.पैकिंग से बहुत कचरा फैलता है, अतः कुछ लोगों ने पैकिंग करना भी बंद कर दिया है. इससे पैकिंग का समय भी बचता है.
इन सब बातों का ध्यान रखकर हम ‘ग्रीन दिवाली’, ‘सेफ दिवाली’ मना सकते हैं. आपने पर्यावरण और व्यर्थ के खर्च बचाने के साथ-साथ समय बचाने के लिए क्या किया है, कामेंट्स में बता सकें, तो अन्य लोग भी लाभांवित होंगे.
बच्चों को बीच मे मत घुसेड़ो। जब हम बच्चे थे, तो दिवाली से 10 दिन पहले ही पटाखे शुरू कर देते थे।
‘ग्रीन दिवाली’, ‘सेफ दिवाली’,
मनाएं, बढ़ाएं खुशहाली,
बीमारी को दूर भगाएं,
बचत से भागे तंगहाली.