वक्त का विस्तार
अन्य किसी ने वक्त को धकियाने में सफलता पाई हो या नहीं, सुदेश ने तो ऐसा संभव कर दिखाया है. कैसे किया! इसे सुदेश का मन ही जानता है.
पहले वह किसी समाचार पत्र से जुड़े हुए थे. उनके ब्लॉग्स छपते ही सुपरहिट की श्रेणी में आ जाते. वे सिर्फ़ सुदेश के ब्लॉग्स ही नहीं, जनता की आवाज भी माने जाते थे.
अब समाचार पत्र के अपने विचार, सुदेश के अपने. होते-होते प्यार से रार और फिर तकरार तक बात पहुंच गई.
”बहुत कुछ सिखाया ज़िंदगी के सफर ने अनजाने में,
वो किताबों में दर्ज था ही नहीं, जो पढ़ाया सबक जमाने ने.”
सुदेश ने ही कभी ये पंक्तियां लिखी थीं, वक्त पड़ने पर वे ही उसका संबल बनीं.
सुदेश ने एक छोटी-मोटी प्रेस खरीदकर अपनी ही वेबसाइट खोलने का मन बनाया. आनन-फानन प्रेस ली भी और खूब चली भी.
”मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.”
आज उनके साथ 2000 जाने-माने साहित्यकार जुड़े हुए हैं और उनकी वेबसाइट से बनने वाली मासिक पत्रिका सर्वश्रेष्ठ पत्रिकाओं में शुमार है.
सुदेश अपनी अच्छी-खासी नौकरी भी कर रहे हैं और पहली तारीख को उनकी शानदार-जानदार पत्रिका भी लेखकों तक पहुंच जाती है. उन्होंने वक्त का विस्तार जो कर लिया था.
इंसान एक बार ठान ले, तो बाकी सब परिस्थितियां उसके सामने राह रोशन कर देती हैं. समय भी उसके सामने विनम्र होकर अपना विस्तार कर देता है, इसलिए उसे समय की कमी का अहसास नहीं होता. दिन के उन्हीं 24 घंटों में, जब बाकी लोग सिर्फ अपनी नौकरी ही मुश्किल से निभा पाते हैं, सुदेश ने इतना बड़ा काम कर दिखाया. आप सबको दीपावाली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.