प्रेम
कोय कोय समझै जगत म्ह इस प्रेम की गहराई,
भक्ति, गृहस्थी अर मुक्ति की राह इसनै दिखाई।
पत्थर की मूरत तै प्रेम वा मीरा बाई कर बैठी,
बालकपण म्ह वा पति उस कृष्ण नै वर बैठी,
भूल दुनिया नै ध्यान पति चरणां म्ह धर बैठी,
होई प्रेम म्ह दीवानी वा घूंट विष की भर बैठी,
दुनिया करै जिक्र उसका, अमर होगी मीरा बाई।
रुक्मिणी की प्रेम कहानी या दुनिया जानै सारी,
सुन सुन कै नाम श्रीकृष्ण का, प्रेम जाग्या भारी,
आपणै भाई रुक्मी तै लड़ी,वा बनी नहीं बेचारी,
प्रेम पत्र भेजा श्रीकृष्ण ताहिं, मैं पत्नी बनूँ थारी,
फेर श्रीकृष्ण नै हरी वा अर रुक्मी तै करि लड़ाई।
कितना प्रेम करा उस राधा नै जानै दुनिया तमाम,
रोम रोम म्ह बसाया श्रीकृष्ण, नाम रटा सुबह शाम,
सुन बाँसुरी की धुन दौड़ी चली आती छोड़ कै काम,
इस प्रेम के कारण श्रीकृष्ण तै पहल्यां आवै स नाम,
उन्मुक्त प्रेम कारण श्रीकृष्ण के हृदय म्ह राधा समाई।
श्री रणबीर सिंह बड़वासनी की शिष्या करगी चाला र,
बहलम्बे आली नै उस अजायब आले कै घाली माला र,
ये जातपात के ठेकेदार रोते रहगे वो हर बना रुखाला र,
प्रेम करो तो पाछै ना हटियो बेशक लिकड़ जा दिवाला र,
देखो प्रेम की माया वा “सुलक्षणा” करण लागी कविताई।
©® डॉ सुलक्षणा