बाल कविता

लाल परी- नील परी

कहा दादी से सोनू मोनू ने
सुनाओ हमें कोई कहानी,
आज ना देखेंगे कार्टून हम
सुननी है हमें परी की कहानी।

कहां दादी ने सोनू मोनू से
फिर बैठो मेरे पास आकर,
करना ना तुम शैतानी फिर
सुनो कहानी मन लगाकर।

एक था राजा किसी देश का
ना थी उसकी कोई भी संतान,
इस दुख से व्यथित थे राजा रानी
किसको सौंपे राज्य का सिंहासन।

बहुत पूजा पाठ करने के बाद
प्राप्त हुआ उन्हें एक पुत्र रत्न,
बड़े प्रेम से पाल रहे थे उसे
करके रात दिन बड़े जतन।

लगे थे सौ सौ नौकर चाकर
उसकी सेवा में दिन और रात,
दौड़ पड़ते सभी उसकी ओर
कभी हिलाने ना देते पैर व हाथ।

अच्छे-अच्छे बनाकर पकवान
रोज उसको खिलाते भर पेट,
हिलने डोलने की थी मनाही
सोता वह दिन भर बिस्तर में लेट।

थोड़ी सी रोने की आवाज आई तो
दौड़ पड़ते सभी उसकी ओर,
आंखों में रात कट जाती सबकी
उसकी सेवा में हो जाती थी भोर।

ना हंसने उसे ना रो ने दिया
ना हिलाने दिया हाथ पैर,
राजा का डर था मन में सबके
मनाते थे सब अपनी खैर।

जब एक साल का हुआ बच्चा
हिलना डोलना उसे ना आया,
ना हाथ पैर चलाना आया
ना मुख से वह कुछ बोल पाया।

बीस किलो का वजन हुआ उसका
देख राजा का सिर चकराया,
कैसे चलाएं, कैसे हंसाए उसे
राजा को कुछ समझ ना आया।

बुलाया सारे राज्य से वैद्यों को
उसका अच्छा इलाज करने हेतु,
सफलता किसी को नहीं मिली
विफल हुए प्रयास सबके परंतु।

मुनादी करा दी पूरे राज्य में राजा ने
स्वास्थ्य लाभ जो कोई करेगा पुत्र को,
प्रसन्न होकर दान कर दूंगा मैं अपने
राज्य का आधा भाग उसको।

एक दिन नील परी राजा के पास
आई राजपूत्र के इलाज के लिए,
बहुत प्रयत्न किया उसने फिर भी
लौटना पड़ा विफलता हाथ लिए।

पुनः एक दिन आई लाल परी
कि राजा से विनती हाथ जोड़कर,
इसके स्वास्थ्य लाभ के लिए, मैं
जाऊंगी इसे अपने साथ लेकर।

पहले राजा तैयार ना हुए
कैसे सौंपे पुत्र को उसके हाथ,
कैसे भरोसा करें उस पर जब
होगा ना कोई उसके साथ।

दी अनुमति राजा ने, रानी ने,
बहुत सोच विचार के पश्चात,
स्वास्थ्य लाभ करेगा मेरा पुत्र
थी उसके जीवन मरण की बात।

लाल परी की शर्त थी यह कि
कोई भी दास दासी होगा नहीं साथ
केवल आपके पुत्र को ले जाऊंगी
मैं अकेली अपने घर, अपने साथ।

लाल परी ने पहले दिन राजपूत्र को
भूखा प्यासा रहने दिया दिन भर,
थोड़ा सा रोने का प्रयास किया
उसने,भूख से, प्यास से तड़पकर।

दूसरे दिन वह हाथ पाव हिला कर
रोने का पुनः करने लगा प्रयास,
गर्दन इधर उधर घुमा कर देखा
कौन है सेवा के लिए उसके पास।

तीसरे दिन बाल परी ने खाना
रख दिया था थोड़ी दूरी पर,
हाथ से पकड़ने का प्रयास किया
उसने करवट बदल बदल कर।

देखा लाल परी ने दूर से ही
पर की ना उसकी कोई सहायता,
मन ही मन प्रसन्न थी वह बहुत
मिल रही है धीरे धीरे सफलता।

चौथे दिन फिर रखी खीर कटोरी
थोड़ी दूर एक मेज के ऊपर,
उठ कर बैठ गया उस दिन वह
मिटाई अपनी भूख, खीर खा कर।

इस तरह दस दिन के भीतर
बच्चा चलने, फिरने, बोलने लगा,
देख लाल परी खुश हुई बहुत
प्रयास उसका सफल होने लगा।

राजा को जब संदेशा मिला
गया पुत्र को देखने परी के पास,
खुशी से आंसू छलक पड़े उसके
देख पूरी होते अपनी मन की आस।

प्रसन्न होकर राजा ने लाल परी को
दान में दे दिया राज्य आधा अपना,
विनम्रता से कहा लाल परी ने
नहीं है मुझे राज्य की कामना।

एक शिक्षा मिले आप सबको
कैसे बच्चे को चाहिए पालना,
चाहे जितना धनवान हो मानव
करने दो उसे कठिनाई का सामना।

पूछा बच्चों ने बड़े भोलेपन से,
इससे क्या मिलती है हमें शिक्षा,
आत्म निर्भर बनकर दिखाओ तुम
मांगो ना किसी से दया की भीक्षा।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

 

 

 

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]