गीत : ढूंढ़ने हम रोशनी को चल दिये
मेरे अरमां हाथों से कुचल दिए।।
कंटकों से थी भरी मंजिल मेरी।
पर वहीं सम्मा जलाने चल दिये।।
उसको हक से कह सकें अपना जो हम।
इसलिए उसको मनाने चल दिये।।
ढूढ़ने हम रोशनी………….
मेरे अरमां हाथों से…………
काबिले तारीफ था वो कारवां। जिस के पीछे गुनगुना के चल दिये।
बज गायी घण्टी जहां मन्दिर की भी।
हम वहीं पर सिर झुकाने चल दिये।
ढूढ़ने हम रोशनी…………
मेरे अरमां हाथों ……………
कह नहीं सकते उसी को बेवफा।
हम भी तो उसके सहारे चल दिये।
वो मुझे कहता रहा कुछ भी मगर।
मुस्करा ,हमने इसारे कर दिए।
ढूंढने हम रोशनी…………..
मेरे अरमां हाथों …………….
थी भवँर में नाव मेरी हर बख़त।
उसने ही हमको किनारे कर दिए।
तीर का सन्धान मैं किस पर करूँ।
चित्त उसने चारखाने कर दिये।।
ढूंढने हम रोशनी……………..
मेरे अरमां हाथों………………
— लाल चन्द्र यादव (अम्बेडकर नगर उ.प्र.)