मन
मन धूप है,
मन छाया है,
मन माया है,
मन सरमाया है,
मन मणि है,
मन रत्न है,
मन प्रयास है,
मन प्रयत्न है,
मन अटकाता है,
मन भटकाता है,
मन संतोषी बनाता है,
मन लटकाता है,
मन संकीर्ण हुआ, तो बड़ा सुख भी छोटा,
मन विराट हुआ, तो छोटा सुख भी बड़ा,
मन सोया, तो मानव भी सोया,
मन उठ खड़ा हुआ, तो मानव भी आगे बढ़ा.
मन ही सब करवाता है,
मन ही भरमाता है,
मन ही सब बहलाता-फुसलाता है,
मन ही साहस देता-दिलाता है.
मन को महकाइए,
मन को लहकाइए,
मन को चहकाइए,
मन को प्यार से सहलाइए.
मन को अपना बनाइए,
सकारात्मक से सजाइए,
मन के गुलाम मत बनिए,
मन को अपने अनुरुप चलाइए.
बहुत सुन्दर रचना … बधाई एवं शुभकामनाये आपको
प्रिय सखी मीनाक्षी जी, आपको रचना बहुत सुंदर लगी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ. आपकी बधाई एवं शुभकामनायें हमारे लिए अनमोल हैं. रचना का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है। सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है। यह मस्तिष्क का एक प्रकार्य है।