चाक
”यह चित्र तो देखो, लगता है अभी बोल पड़ेगा!” कुम्हार के चलते चाक पर प्यार से गीली मिट्टी पर थपकी देते हुए हाथों वाले चित्र को देखते हुए निर्णायक मंडल के एक सदस्य ने कहा.
”बात तो बिलकुल सही कह रहे हो.” चित्र को ध्यान से देखते हुए दूसरे सदस्य ने कहा.
”सामान्य-से इस चित्र में दार्शनिकता का पुट भी है, तो आध्यामिकता का अंदाज भी और सृजन का संकेतक तो है ही.” तीसरे सदस्य का कहना था.
”रंगों का चयन भी तो देखो, खूबसूरती मानो छलक रही है!”
”यही तो श्रेष्ठ सृजन का सार है.”
”इस सृजन का सृजनहार कैसा होगा!” दार्शनिक आंखें चमक रही थीं.
”बिलकुल सृष्टि के सृजनहार जैसा, जिसके हर सृजन में सौंदर्य का सागर है.” आध्यात्मिकता उजागर हो रही थी.
”हर उत्सव-त्योहार इसी चाक के सृजन से मूर्तिमान होता है और रोशन भी.”
”यानी सृजन और रोशनी का मेल!”
”सृजन, प्रकाश और जीवंतता विजेता होती है.”
चित्रकार के इन्हीं संवेगों को सम्मानित किया गया था.
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपको रचना बहुत सुंदर लगी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. वाकई यह हज़ारों बल्बों की लड़ीआँ कुम्हार के मट्टी से बनाए दिए का मुकाबला नहीं कर सकतीं . अपनी सभ्यता को जिंदा रखना है तो कुम्हार के बनाये दिए को भूलना नहीं चाहिए . जो इम्पोर्ट की हुई लड़ीआँ हैं , उस का फायदा किसी अमीर को होता है लेकिन कुम्हार के दिए से न जाने कितने कुम्हारों के घर चूल्हा जलेगा जो अपने देश का ही फायदा है. रचना का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
बहुत अच्छा सन्देश है इस रचना में . वाकई यह हज़ारों बल्बों की लड़ीआँ कुम्हार के मट्टी से बनाए दिए का मुकाबला नहीं कर सकतीं . अपनी सभ्यता को जिंदा रखना है तो कुम्हार के बनाये दिए को भूलना नहीं चाहिए . जो इम्पोर्ट की हुई लड़ीआँ हैं , उस का फायदा किसी अमीर को होता है लेकिन कुम्हार के दिए से न जाने कितने कुम्हारों के घर चूल्हा जलेगा जो अपने देश का ही फायदा है .
चलते चाक पर प्यार से गीली मिट्टी पर थपकी देते हुए हाथों से नया सृजन करते हुए कुम्भकार के हाथों से दिया बनता है, जो दीपावली का तो प्रमुख आकर्षण है ही, अन्य त्योहारों पर भी दिए-करवे आदि कुम्हार ही बनाता है. घड़ा भी कुम्हार बनाता है, जिससे हम प्यास तो बुझाते ही हैं, गृह प्रवेश, शादी-ब्याह में भी घड़ा प्रधान होता है और अंतिम संस्कार में भी घड़ा ही काम आता है यानी जन्म से मृत्यु तक घड़ा-ही-घड़ा. भले ही कितने और कैसे भी फ्रिज आ जाएं, पर प्यास तो घड़े के पानी से ही बुझती है, तृप्ति होती है. देवी-देवताओं की मूर्तियां भी कुम्हार का सृजन हैं. हमें कुम्हार के काम को बढावा देना चाहिए, ताकि हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता जिंदा रहे.