कविता

परिधान

रूपा रानी व दोनों बेटियों में
मतभेद था लेकर परिधान,
मान्यता थी उसकी, साड़ी है
भारतीय संस्कृति की पहचान।
लगती सुंदर भारतीय नारियां
सदैव साड़ी ही पहनकर,
फबता नहीं है अन्य परिधान
नारियों के सुंदर तन पर।
इसी बात पर बेटियों के साथ
नित नित होता था विवाद,
रो रो कर रह जाती बेटियां
छा जाता पूरे घर में विषाद।
बड़ी बेटी ने सलवार कुर्ती पहनी
करके मिन्नते बड़े दिनों के बाद,
ढीली- ढाली सलवार कुर्ती
ओढ़ कर दुपट्टा उसके साथ।
बड़ी बेचारी भोली थी बहुत
मान ली अपनी मां का कहना,
समझाया था मां ने उसे बहुत
लज्जा नारियों का है गहना।
छोटी बेटी जिद पर अड़ गई
मैं ना पहनूं ऐसी सलवार,कुर्ती,
जैसे कोई नेता जा रहा हो
पहन कर कुर्ता और धोती।
अबकी दिवाली लेना है मुझे
जींस और उसके साथ टी-शर्ट,
सारी लड़कियां पहनती है तो
लगती है बहुत ही सुंदर,स्मार्ट।
रूपा रानी ने सिर पीट लिया
लड़की तू है बड़ी बेहया,
इतना सिखाया, पढ़ाया तुझे
फिर भी कुछ ना समझ आया।
अब तो बात बात पर मां बेटी में
नित नित होने लगी थी खटपट,
देख मां का क्रोधित रूप वह
पहन जींस निकल जाती झटपट।
बड़ी बेटी समझाती मां को
जींस टी शर्ट में क्या भला दोष,
समय अनुसार बदलता परिधान
निकाल फेंको मनसे सारा रोष।
रूपा रानी हुई ह्रदय रोग से ग्रसित
डॉक्टर ने कहा,जाओ करने योगा,
चिंता में पड़ गई रूपा रानी
साड़ी पहन यह कैसे संभव होगा।
पहन कर सलवार कुर्ता वह
गई एक दिन फिर योगा करने,
देखा सहेलियों ने आंखें फाड़ के
पल्लू में मुंह छुपा कर लगी हंसने।
रूपा रानी को क्या हो गया
हो गई कौन सी इसको बीमारी,
छोड़ साड़ी,पहनी सलवार,कुर्ता
भारतीय सभ्यता की मारी बेचारी।
रूपा रानी ने कहा सहेलियों से-
“क्या है सलवार कुर्ता में बुराई,
ढका रहता है पुरा तन हमारा
है इसमें बहुत सारी अच्छाई।
चलने फिरने तथा योगा करने में
इससे अच्छा नहीं है कोई परिधान,
काम करना हो या फिर सैर करना
सब कुछ हो जाता है आसान।
सलवार कुर्ता भी है भारतीयों का
एक अति उत्तम, सभ्य परिधान,
इसमें झलकती है हमारी संस्कृति
बना रहता है संस्कृति का मान।
परिधान जब तक ना हो दृष्टि कटु
उस परिधान का करो सम्मान,
परिवर्तन को करो स्वीकार
समय के साथ बदलता परिधान।”

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]