ये बालक कैसा? (हाइकु विधा)
ये बालक कैसा? (हाइकु विधा)
अस्थिपिंजर
कफ़न में लिपटा
एक ठूँठ सा।
पूर्ण उपेक्ष्य
मानवी जीवन का
कटु घूँट सा।
स्लेटी बदन
उसपे भाग्य लिखे
मैलों की धार।
कटोरा लिए
एक मूर्त ढो रही
तन का भार।
लाल लोचन
अपलक ताकते
राहगीर को।
सूखे से होंठ
पपड़ी में छिपाए
हर पीर को।
उलझी लटें
बरगद जटा सी
चेहरा ढके।
उपेक्षितसा
भरी राह में खड़ा
कोई ना तके।
शून्य चेहरा
रिक्त फैले नभ सा
है भाव हीन।
जड़े तमाचा
मानवी सभ्यता पे
बालक दीन।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया