संयोग पर संयोग-4
गुरमैल भाई से मुलाकात
संयोग तो जिंदगी में होते ही रहते हैं. संयोग पर संयोग-2 की कड़ी में हमने आपको बताया था, कि हमारा नेट पर आना भी एक संयोग है. अब ब्लॉग लिखेंगे, तो पाठक-कामेंटेटर्स के साथ संवाद भी चलेगा ही. अपना ब्लॉग से पहले पाठक पन्ना आया करता था. एक दिन अचानक सूचना आई, कि पाठक पन्ना बंद हो रहा है, आप अपनी रचनाएं सुरक्षित रख लें, अब अपना ब्लॉग शुरु होगा.
पाठक पन्ना के सभी सम्माननीय लेखक-रचनाकार हमारे साथ अपना ब्लॉग पर आ गए और हम सब एक दूसरे को खूब प्रोत्साहित करते थे. उन दिनों हमारे ब्लॉग मैनेजर पर कामेंटेटर्स की ई.मेल भी आया करती थी. बचपन से अपने शौक और आदत के मुताबिक हमें जिस कामेंटेटर की प्रतिक्रिया शानदार-जानदार लगती थी, उसको हम कामेंट्स में भी और ई.मेल पर भी लिखते थे, कि आप बहुत अच्छे लेखक-साहित्यकार बन सकते हैं, थोड़ी-सी कोशिश आप कीजिए, आपके साथ मेहनत हम भी करेंगे. जो जवाब देता था और कोशिश करता था, उनमें सबसे पहले सक्रिय पाठक-कामेंटेटर मिले- गुरमैल भाई.
गुरमैल भाई के कलम-दर्शन करना एक अनोखा और दुर्लभ संयोग है. गुरमैल भाई से हमारी मुलाकात March 12, 2014 के ब्लॉग ‘आज का श्रवणकुमार’ में हुई. इस ब्लॉग में गुरमैल भाई की प्रतिक्रिया लाजवाब थी. हमने तुरंत उनको कामेंट्स और ई.मेल पर लिखा, कि ”आपकी प्रतिक्रिया लाजवाब है. हमें ऐसा प्रतीत होता है, कि आप बहुत अच्छे लेखक हैं.”
उनका जवाब भी लाजवाब था, कि वे तो बस एक पाठक-कामेंटेटर ही थे. उससे पहले, वे कई ब्लॉगर्स को व नभाटा के समाचारों आदि पर कई सौ कामेंट्स लिख चुके थे, लेकिन उनको कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला या मिला भी तो संतोषजनक नहीं. ऐसे में मन का मुरझाना स्वाभाविक था. वे हमारे ब्लॉग्स काफी समय से पढ़ रहे थे और उन पर दिए गए उत्तर भी, पर न जाने क्यों कामेंट लिखने में संकोच कर रहे थे. आखिर एक दिन हिम्मत जुटाकर उन्होंने एक कामेंट लिख ही दिया. उनको, जो उत्तर मिला, वह उन्हें संतोषजनक क्या काफ़ी संतोषजनक लगा और उसी ब्लॉग के कामेंट्स में उन्होंने अपनी सारी गाथा उजागर कर दी.
March 12, 2014 को उनसे हमारी पहली मुलाकात हुई और को March 17, 2014 को उन्हीं कामेंट्स के आधार पर, उनकी सहज अनुमति से, उनकी जीवन-गाथा पर आधारित हमारा पहला ब्लॉग ‘गुरमैल-गौरव-गाथा’ प्रकाशित हुआ. तन से तो वे व्यथित थे ही, उसकी कथा भी एक बार फिर हम आपको संक्षेप में सुनाएंगे, पर कामेंट्स का उत्तर न मिलने के कारण, मन से दुखी गुरमैल भाई प्रसन्नता से गद्गद हो गए. उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था, कि उन पर कभी कोई ब्लॉग भी लिखा जाएगा. उनका उत्साह बढ़ता गया और वे कामेंट्स में, मेल पर, फेसबुक पर अपनी कथा सुनाते चले गए और उन पर जल्दी-जल्दी कई ब्लॉग्स आ गए. उस समय के नियम के मुताबिक हम सप्ताह में एक ही ब्लॉग लिखते थे, इसलिए जल्दी का मतलब है, उनकी ही बारी आती चली गई, जो अब तक जारी है.
उसके बाद हमने उन पर आधारित ब्लॉग्स की दो ई.बुक्स बना दीं. गुरमैल भाई से जब हमारी मुलाकात हुई, तो वे कॉपी-पेस्ट करना भी नहीं जानते थे. वे फेसबुक पर हमसे चैट करते रहते थे और इसी दौरान उन्होंने बातो-बातों में बहुत कुछ हमसे सीख भी लिया और हमें जीने के अंदाज भी सिखा दिए. अब तो उनकी कलम चल पड़ी. उन्होंने जय विजय वेबसाइट पर लिखना शुरु कर दिया, जहां उनको पहले ही साल ”सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार” का पुरस्कार मिला.
फिर उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखनी शुरु की. यह आत्मकथा भी एकदम अनोखी और प्रेरणादायक थी और पाठकों ने उसे हाथों-हाथ लिया. हमने उनकी आत्मकथा की 9 ई.बुक्स बना दीं. अब वे अपनी आत्मकथा को पंजाबी में अनुवादित करके फेसबुक पर पब्लिश कर रहे हैं, जो बहुत लोकप्रिय हो रही है.
गुरमैल भाई अब भी लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं. वे जय विजय पर शानदार ब्लॉग्स लिख रहे हैं, रेडियो पर नियमित रूप से अपनी रचनाएं भेजते रहते हैं, अपनी आत्मकथा को पंजाबी में अनुवादित कर फेसबुक पर पब्लिश कर रहे हैं. गुरमैल भाई हिंदी, इंग्लिश, पंजाबी के धुरंधर साहित्यकार बन गए हैं. आजकल उनके पास अपना ब्लॉग नहीं पहुंच पा रहा, इसलिए हम उनके अनुरोध पर सारे ब्लॉग्स जय विजय पर भी प्रकाशित कर रहे हैं.
गुरमैल भाई पर लिखे गए ब्लॉग्स लिखकर गूगल पर सर्च करते ही गजब का परिणाम सामने आता है. गुरमैल भाई जैसे विशाल व्यक्तित्व पर एक ब्लॉग में लिखना मुश्किल है. इसलिए आप हमारा एक ब्लॉग पढ़ लीजिए-
‘ई.बुक’ की बधाई, शुभकामनाएं गुरमैल भाई
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/?p=38190
उन पर आधारित लिखे ब्लॉग्स के पहले संकलन का लिंक है-
उन पर आधारित लिखे ब्लॉग्स के दूसरे संकलन का लिंक है-
गुरमैल भाई की आत्मकथा की ई.बुक्स के लिंक इस प्रकार हैं-
गुरमैल भाई को कविता तनिक भी नहीं सुहाती थी, क्योंकि दुरुह होने के कारण वे उनको समझ नहीं आती थीं. उनको हमारी कविताएं सरल-सरस-सहज-सार्थक लगीं, इस कारण वे हमारी कविताओं में रम गए. फिर उन्होंने बहुत सुंदर कविताएं भी लिखीं. हमने हाइकु पर ब्लॉग लिखा तो गुरमैल भाई ने भी हाइकु लिखे-
1.सच्चा है ज्ञान
भूत-भविष्य से अच्छा
है वर्तमान.
-गुरमैल भमरा
2.प्रेम ही प्रेम
मिला है सब से ही
रब की देन.
-गुरमैल भमरा
इस तरह कविता की हर विधा क्षणिका, मुक्तक आदि पर उन्होंने अपनी कलम की सफल आजमाइश की.
यहां हम आपको एक बात बता देना अत्यावश्यक समझते हैं, कि हमारा सारा तकनीकी काम हमारे सुपुत्र राजेंद्र तिवानी करते हैं. हमारे जो पाठक-कामेंटेटर्स उनसे ई.बुक बनाना सीखना चाहते हैं, उनको नेट पर सिखा भी देते हैं. ये सारी ई.बुक्स राजेंद्र तिवानी ने ही बनाई हैं.
हमने कभी अपनी ई.बुक्स की बात सोची भी नहीं थी, फिर तो हमारी भी अनेक ई.बुक्स बन गईं.
आशा है संयोग से मिले गुरमैल भाई की गाथा आपको लाजवाब लगी होगी. आपके साथ भी ऐसा कुछ संयोग हुआ होगा, आप भी कामेंट्स में हमें लिखकर भेज सकते हैं. इससे अन्य पाठक भी लाभान्वित होंगे.
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपको रचना बहुत सुंदर लगी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. अपना ब्लॉग पर भी इसका बहुत स्वागत हुआ है. रचना का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
प्रिय गुरमैल भाई जी,
न हथियार से मिलती है,
न अधिकार से मिलती है,
दिलों में जगह,
आपके व्यवहार से मिलती है,
संयोग पर संयोग बनता चला गया. आपने हमारे ब्लॉग पर आने की पहल की. मुलाकात हुई, बात हुई और आपकी मेहनत और लगन से सफलता की राह बनती गई. जिसके गाने-बजाने पर दुनिया फिदा हो, उसका बोलना ही बंद हो जाए, तबले पर मचलने वाली उंगलियों का हिलना बंद हो जाए, सारी दुनिया को बस में सैर करवाने वाले का चलना-फिरना बंद हो जाए, उसकी हालत का अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. इसके बावजूद आपने अपनी सफलता का रास्ता खुद बनाया, आपको कोटिशः प्रणाम.
लीला बहन , आप ने मुझ को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया . एक मुरझाये हुए ब्रिक्ष को फिर से हरा कर दिया . कुलवंत हमेशा आप को याद करती है और आप का धन्यावाद करती है .जब भी किसी से मेरे बारे में बात करती है तो वोह आप का नाम पहले लेती है की आप ने ही मुझे एक नई दिशा दिखाई है और नतीजा यह हुआ की मुझे डिसेबिलिटी भूल गई और यह बहुत बड़ी बात है मेरे लिए . जो आत्म कथा मैंने लिखी है, उस को पढ़ पढ़ कर मैं खुद हैरान हो जाता हूँ की कैसे इतने एपिसोड लिख दिए . राजकुमार भाई तो अछे साहित्कार थे ही लेकिन आप ने उन को भी एक नई दिशा दिखाई और उन्होंने भी जयविजय सम्मान पत्र हासल कर लिया और आज वोह अनुपम और फलक के ऐडमिन हैं . रवेंदर भाई को भी आप ने उत्साह्त किया और बहुत अच्छा लिख रहे हैं . कहते हैं, किसी की ज़िआदा उपमा भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस से उपमा शब्द की कीमत कम हो जाती है , इस लिए मैं आप का धन्यवाद ही करूँगा .
प्रिय गुरमैल भाई जी, हमने आपका बहुत बढ़िया संदेश संयोग पर संयोग-4 में पब्लिश कर दिया है. इस संदेश के लिए हम आपके बहुत आभारी हैं. सब कामेंट्स आ जाए, फिर हम आपको भेज देंगे. आपके सुनहरे भविष्य के लिए हमारी कोटिशः शुभकामनाएं.