ग़ज़ल
साथ तेरे जब से मैं आया गया।
गीत मेरा हर जगह गाया गया।
फैसला हक़ में न फरमाया गया।
हर तरह से खूब बहकाया गया।
उंगलियाँ जज़ पर उठाता है वही,
हक़ ब जानिब जो न ठहराया गया।
मारता था ठोकरें जो कल तलक,
ठोकरों में आज वो पाया गया।
हम क़दम था ऱौशनी में हर क़दम,
तीरगी में छोड़ कर साया गया।
— हमीद कानपुरी