प्रदूषण बनाम वाहनों की आयु सीमा
प्रदूषण से इस पृथ्वी के समस्त जीव जगत { जन्तु और वनस्पति दोनों } के विलोपन का निकट भविष्य के कुछ दशकों में गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है ,भारत की राजधानी समेत कई अन्य शहर दुनिया के सर्वोच्च प्रदूषित शहरों में हैं ,इसलिए दिल्ली में सरकार द्वारा डीजल इंजन की गुणवत्ता ,रखरखाव और कुल चले हुए किमी. के आधार पर पुराने डीजल चालित वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाना सर्वथा स्तुत्य कार्य है ,इसके अलावे हरेक शहरों में साफ-सुथरे यूरोपियन शहरों की तर्ज पर डीजल ,पेट्रोल चालित प्राईवेट कारों और टैक्सियों की जगह सार्वजनिक वाहन जैसे सीएनजी गैस या विद्युत चालित बसों,ट्रामों ,बैट्री चालित रिक्शे , रिक्शे ,सायिकिलें और घोड़े से खींचे जाने वाले तांगे ही शहरों के अन्दर चलने की इजाजत हो ,पेट्रोल {बगैर सीसे के } ,डीजल चालित गाड़ियों को केवल लम्बी दूरी की यात्राओं तक सीमित कर देना चाहिए ।
आखिर हम किस दुनिया में और किस मानसिकता में जी रहे हैं , कि हमें इतनी बात समझ में नहीं आ रही कि हमारा देश ,हमारा पर्यावरण ,हमारी नदियां ,हमारा भूगर्भीय जल सभी हमारे ही अनियमित और निरंकुश आचरण से सभी कुछ प्रदूषित हो रहा है । हम आखिर दुनिया में कौन से मानक और मर्यादित आचरण का किर्तिमान स्थापित कर रहे हैं ? ,जिससे पूरा देश और यहाँ के अधिकतर शहर दुनिया में सबसे ज्यादे प्रदूषित होने को अभिषापित हो रहे हैं ,जिससे प्रतिवर्ष लाखों लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं और अरबों-खरबों रूपये हम इससे उत्पन्न बिमारियों के इलाज के लिए खर्च कर देते हैं ! क्या यूरोप ,अमेरिका और अन्य विकसित देशों के लोग हम भारतीयों से कम बुद्धिमान हैं ? , जो अपने देश को हर कीमत पर प्रदूषण मुक्त रखने के लिए प्रयत्नशील हैं , जैसे नीदरलैंड जैसे देश के 70 प्रतिशत तक लोग अपना दैनिक काम चाहे आफिस जाना हो ,बाजार जाना हो ,कॉलेज जाना हो सभी के लिए सायिकिलों का अधिकाधिक प्रयोग करते हैं , यूरोप के अधिकांश शहरों में अभी भी घोड़े से खींचे जाने वाली परिष्कृत बग्घी का प्रयोग करते हुए दिखते हैं । और हम भारतीय सायिकिलों और घोड़े द्वारा खींचे जाने वाले बग्घियों पर चढ़ने में ‘ हमारी इज्जत का क्या होगा ? ‘ या ‘ लोग क्या कहेंगें ? की क्षद्म मानसिकता में जीते हैं !
हम भारतीयों को अगर स्वस्थ्य रहना है ,अपने देश को ,पर्यावरण को स्वच्छ रखना है ,नदियों और शहरों को प्रदूषण मुक्त रखना है तो अपनी मानसिकता और आदतें सुधारनी ही होंगी , एक तरफ हम स्वच्छ भारत का नारा लगाते हैं और दूसरी तरफ सुप्रीमकोर्ट के प्रतिबंधात्मक आदेश के बावजूद मास्क लगाकर खूब पटाखे छोड़ते हैं , आस्था के नाम पर प्रतिवर्ष विषाक्त रंगों से युक्त लाखों मूर्तियों को नदियों ,तालाबों में विसर्जित कर अपनी पावन नदियों को तबाही के कगार पर लाकर जलीय जीवों सहित स्वयं के जीवन को भी खतरे में डालकर यह कौन सा किर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं ? ,हमें खुद ही नहीं पता , हमें कब चेतना आयेगी कि आस्था के नाम पर किया गया ये स्वयं द्वारा किया गया प्रदूषण स्वयं हमारे लिए ही अत्यन्त प्राणघातक और बिमारियों को आमन्त्रित करने जैसा है । इसलिए भारत की राजधानी दिल्ली समेत देश के सभी शहरों और सभी प्रदेशों में डीजल और पेट्रोल चालित प्राइवेट वाहनों के प्रयोग को सार्वजनिक वाहनों की अधिकाधिक सुविधा देकर जनता को उससे विमुख करने का काम युद्ध स्तर पर और त्वरित गति से करना ही होगा ,नहीं तो पूरा भारत प्रदूषण युक्त गैस चैंबर बन जायेगा । यह नियम ईमानदारी और कड़ाई से और पूरे देश में लागू हों ,तभी प्रदूषण की समस्या से निजात मिलेगी।
— निर्मल कुमार शर्मा