एक बूंद
चार दिन से विनीत ऑफिस नहीं जा रहा था. आज भी उसने अपनी कंपनी के मालिक को संदेश दे दिया है, कि वह ऑफिस नहीं आएगा. उसके मालिक को भी विश्वास है, कि विनीत ऑफिस आए या नहीं, चौबीसों घंटे ऑफिस के काम में मुस्तैद रहता है.
फुर्सत के पल मिलते ही अतीत चुपके से बिना दस्तक दिये हलचल मचाने लगता है यह किसी को कहां समझ आती है. विनीत के साथ भी आज ऐसा ही हो रहा है.
इंग्लिश स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान उसने आठवीं कक्षा तक हिंदी भी पढ़ी थी. हिंदी उसने भले ही कम पढ़ी थी, लेकिन जितनी पढ़ी थी, मन से पढ़ी थी और बहुत गहराई से उसे आत्मसात भी किया था.
उसने अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की एक कविता ‘एक बूंद’ पढ़ी थी, जो उसे याद भी थी-
”ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी.
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?”
आज से 20 साल पहले वह पत्नी और छोटे से बेटे के साथ घूमने के लिए मित्र के पास विदेश आया था. यों ही समय बिताने के लिए वह रात को मित्र का लैपटॉप लेकर नौकरी के लिए आवेदन करता रहता था.
एक दिन अचानक उसे नौकरी मिल भी गई, वह भी वर्क वीज़ा के साथ. उसके मन में हलचल की तरंगें हिलोरे लेने लगीं. माता-पिता, भाई-बहिन, चाचे-ताए सब भारत में, वह विदेश में अकेला पड़ जाएगा. फिर वहां की पूरे उत्तर भारत की मार्केटिंग मैनेजर की नौकरी!
”मार्केटिंग की नौकरी तो यहां भी मिली है.” मन ने कहा- ”वहां की तरह मेहनत, लगन और ईमानदारी से काम करोगे, तो यहां भी मैनेजर बनने में कौन सी देर लगेगी!”
”ऐसा मौका विरलों को ही मिलता है विनीत, इतना मत सोचो.” मित्र ने राय दी थी.
”ठीक है, तुम वहीं नौकरी ज्वॉइन कर लो, यहां की चिंता मत करो.” माता-पिता ने अनुमति देते हुए कहा था.
”भाई, ऐसा मौका कभी-कभी मिलता है, झटक लो.” भाई-बहिन ने कहा था.
”तुम्हारी क्या राय है?” उसने पत्नी से पूछा था.
”भारत में कामयाबी के नुस्खों को यहां भी अपलाइ कर देना, पूर्व-पश्चिम का मेल भी हो जाएगा और हमारे लिए भारत भी यहीं हो जाएगा.” पत्नी का परामर्श था.
तभी उसे कविता ”एक बूंद” की याद आई थी.
एक बूंद ने भी तो बादलों की गोद से निकलकर सोचा था- ”आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी?” नियति ने उसे सुन्दर सीप का खुले मुंह में डाल दिया था और वह मोती बनकर सीख दे गई-
”लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूंद लौं कुछ और ही देता है कर.”
उस सीख ने उसमें सही समय पर सही निर्णय लेने के साहस का संचार कर दिया था. आज विनीत विदेश के बहुत-से प्रांतों का मार्केटिंग मैनेजर और अपना बॉस खुद है. सबको उसकी मेहनत, लगन और ईमानदारी पर भरोसा है. उससे पूछने वाला भी कोई नहीं. मालिक को जब वह खुद कुछ बताए, तो सुन लेता है. मालिक को मुनाफ़े से मतलब है, उसका मुनाफ़ा कई गुना बढ़ गया है.
किसी भी विषय में पारंगत होते हुए भी कई लोग उसकी गहराई तक नहीं पहुंच पाते, पर विनीत का किस्सा अलग है. उसने हिंदी भले ही कम पढ़ी थी, पर जितनी भी पढ़ी थी, गहराई से उसे मन में उतार दिया. समय आने पर उसी गहराई ने उसको सफलता की सहज राह दिखा दी.