कविता

ख़्वाहिशें

बहुत शोर है
भीतर गहराई में
मानो टकरा रहीं हो
सभी ख़्वाहिशें आपस में
मगर कुछ ख़्वाहिशें
ये समझ गई हैं
उनके पूरे होने की
कोई आस नहीं है
इसलिए अब वो चुपचाप
खामोश होकर कहीं
मन के कोने में सुप्त हैं
पर कभी -कभी
मन की उड़ान को देख
आती है बजूद में मगर
जानती हैं भीतर- भीतर
वो कभी नहीं होंगी पूर्ण
वो ख्वाहिशें, ख़्वाहिशें ही रहेंगी।

कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |