शिखर की ललक
शिखर की ललक है जिनको,
शिखर तक पहुंच जाते हैं।
लगाकर अम्बर तक सीढ़ी,
निरंतर बढ़ते जाते हैं॥
वे अवसरों को जुटाते हैं,
वे सपनों को भुनाते हैं।
कमर में बांधकर फेंटा,
भंवर को लांघ जाते हैं॥
कल्पना के पंखों से ही,
क्षितिज के पार जाते हैं।
बढ़ाकर कदम साहस से,
पर्वतों को झुकाते हैं॥
प्यार के गीत से गुम्फित,
नई सृष्टि सजाते हैं।
कठिनतम रुक्ष रेशों से,
दुविधाएं हटाते हैं॥
सुरीले साज से जग के,
विधाता को जगाते हैं।
नेह के नीर से वन में,
सुरभिमय सुमन सजाते हैं॥
अग्नि के पुंज से अपनी,
मशालों को जलाते हैं।
सरोवर में खड़े होकर,
स्नेह से सेतु बनाते हैं॥
हलाहल का प्याला लेकर,
सुधा के गीत गाते हैं।
शिखर की ललक है जिनको,
निरंतर चढ़ते जाते हैं॥
सच है-
ये राहें ले ही जाएंगी मंज़िल तक हौसला रख,
कभी सुना है कि अंधेरे ने सवेरा नहीं होने दिया.
जीत और हार आपकी सोच पर ही निर्भर करती है,
मान लो तो हार होगी, ठान लो तो जीत होगी.
अपने वजूद पे इतना तो यकीन है मुझे,
कि कोई दूर तो हो सकता है मुझसे पर, भुला नहीं सकता.