गज़ल
मायूस न हो ग़र मिले नाकामियां कभी
ऎसा हे कि सब खा़ब्ब मुसल्सल नहीं होते।
माँ-बाप मुहब्बत में यही चाहें कि बच्चे,
पल भर को भी निगाह से ओझल नहीं होते|
मुश्किल कोई भी हो यहां आसां नहीं होती
हैं एसे भी मसले जो कभी हल नहीं होते|
तहजीब और अमन को बचाना जरूरी है
वरना शहर में ये जले महल नही होते|
आँखो की किरकिरी भी लोग बनते है कभी
सब लोग आँख का मेरी काजल नही होते.
— रेखा मोहन