हमीद के दोहे
दहकां के दुख दर्द का,तनिक नहीं आभास।
वोटन खातिर गाँव में , झूठा करें प्रवास।
जनता किस बूते करे, इन पर फिर विश्वास।
वर्तमान को खोद कर , बदल रहे इतिहास।
खास ज़हनियत के रहे , हरदम ये तो दास।
शासन इनका यूँ नहीं , आता सब को रास।
बालिंगका लगतानहीं,अनुभव उसको खास।
रोहित बल्लेबाज़ है , फेंक रहा फुलटास।
जनता की तकलीफ का,ज़रा नहीं अहसास।
अगड़म बगड़म काम कर,करा रहे परिहास।
(दहकां = किसान)
— अब्दुल हमीद इदरीसी