धागे
रिश्तों को
सहेजने की खातिर,,,
देखो…
कैसे जूझते हैं धागे ।
कभी अकेले,
तो कभी.. ले सूई को संग,
इत भागे, कभी उत भागे।।
इक हिस्से से मिलें,
तो कभी दूजे से,
करने को उनको एकसार।
कर सिलाई,,,
कभी जोड़े उनको,
कभी…
इकजुट करे उनको,
बाँध के गाँठ ।
इकजुटता बनाने की खातिर,
करते हैं अथक प्रयास।
कभी हों सफल,
कभी होतें हैं विफल,
और बदले में मिलता हैं …
तनाव – खिचाव ।
कपड़े को
जोड़ने की आस में “धागे” अक्सर,
अपना अस्तित्व भी खोते हैं ।
सच में…
घर के बड़े-बजुर्ग भी तो,
धागा ही तो होते हैं ।
— अंजु गुप्ता