कुमारी का मंदिर
विशाल सागर हृदय में बसा मंदिर
सुनाता कुमारी की वीरता की गाथा,
बाणासुर का काटा था मस्तक उसने
प्रसिद्ध है इतिहास में यह पौराणिक कथा।
देवी पार्वती की अवतार थी कुमारी
थी शिव जी की सबसे बड़ी भक्तिन,
शिवजी से विवाह करने की थी कामना
कर चुकी थी शिव जी को मन अर्पण।
एक असुर था तब, दुष्ट बाणासुर
मिला शिवजी से था उसको वरदान,
केवल कोई कुमारी कन्या के हाथों
ही समाप्त होगा उसका जीवन।
अत्यंत रूपवती, गुणवती थी कुमारी
चारों ओर चर्चा थी उसकी सुंदरता की,
सुनकर असुर बाणासुर के मन में
उससे विवाह करने की इच्छा जागी।
कहा बाणासुर से तब कुमारी ने
यदि युद्ध में मुझे पराजित करते हो,
वचनबद्ध होती हूं मैं तुमसे अभी
तुम मुझसे तब विवाह कर सकते हो।
युद्ध में पराजित हुआ बाणासुर
कुमारी के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ,
तब से यह जगह कुमारी के नाम से
कन्याकुमारी के रूप में सुप्रसिद्ध हुआ।
तीन समुद्रों का संगम है यहां पर
दृश्य अत्यंत ही मनोरम, मनलुभावन,
मंदिर के पगों को पखारती है
समुद्र की ऊंची ऊंची लहरें पावन।
अनंत जल राशि के मध्य बसा यह मंदिर
आंखों को आश्चर्यचकित कर जाता है,
इसकी अप्रतिम, अद्वितीय सौंदर्य
पर्यटकों का मन पल में मोह लेता है।
देश भर से साधु, संत आते हैं यहां
दीक्षा लेने तथा यहां करने भ्रमण,
स्वामी विवेकानंद जी आए थे यहां
समाधि लेने जीवन में अंतिम क्षण।
महान संत स्वामी विवेकानंद जी ने
ले ली थी जब यहां पर समाधि,
बना विवेकानंद स्मारक तब यहां पर
कन्याकुमारी ने पाई और प्रसिद्धि।
महान संत के स्मारक के दर्शन करने
लाखों पर्यटक विश्व से आते हैं यहां,
दर्शन कर मंदिर की अप्रतिम वास्तुकला
ठिठककर क्षण भर रुक जाते हैं यहां।
धारण कर लेता जब समुद्र रौद्र रूप
धरती से सब कुछ बहा ले जाता है,
मां की कृपा दृष्टि का है यह चमत्कार
मंदिर जस का तस खड़ा रह जाता है।
पूर्णतः मौलिक – ज्योत्सना पाॅल।