गजल
हैरान हो गया बुझा व्यवहार देखकर
अभिभूत हो गया दिली सत्कार देखकर
अंग्रेज आये थे यहाँ व्यापार के लिए
फिर रह गए थे माल का अम्बार देखकर
नाराज़ थी प्रिया मेरी जब देर हो गई
आनंद मग्न हो गई उपहार देखकर
पति प्यार से दुलार से खुश जब किया उसे
नाराज़ अब रही नहीं मनुहार देखकर
दोनों झगड़ते रहते हैं, दिन रात बेवजह
लगता नहीं हबीब है, तकरार देखकर
अब स्वार्थ के जमाने में रिश्ता रहा नहीं
बच्चे भी भागते माँ को बीमार देखकर
नौका विहार में गए बच्चे थे साथ में
बच्चे तमाम खुश हुए पतवार देखकर
गिर्दाब में रिकाब फँसी, सब सवारी त्रस्त
घबरा गया था माझी भी मझधार देखकर
रोती बहू उदास क्यों ‘काली’ जरा बता
दुल्हन हुई प्रसन्न थी घर द्वार देखकर
— कालीपद ‘प्रसाद’