गजल
हर तरफ है खौफ का मंजर खुला
रहनुमा का राज़ का तेवर खुला |
बंद के पश्चात जब परिसर खुला
आदमी के हाथ में खंजर खुला |
सिन्धु से भारत घिरा है तीन सू
किन्तु पश्चिम द्वार क्यों अक्सर खुला |
चोर बैंकों से चुराते खूब थे
देश में वो राज़ था, बाहर खुला |
वो छुपाया राज़ जो परदे में था
वो नहीं अब गुप्त, दुश्मन पर खुला |
संकटों में दोस्त गर मुँह मोड़ ले
सोच मत, भगवान रखते दर खुला |
जल प्रलय के बाद तड़पे भूख से
मुफलिसों के वास्ते लंगर खुला |
भूखा कोई भी न होगा गाँव में
सांसदों ज्यों एक केंटिन गर खुला |
गिडगिडाओ तुम, करो कुछ भी यहाँ
बंद ‘काली’ सब नयन, बस सर खुला |
— कालीपद ‘प्रसाद’